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आध्यात्मिक प्रगति के मूलाधार
प्रगति की होड़
__ वर्तमान वैज्ञानिक युग में मनुष्य में प्रगति की होड़ लगी हुई है । प्रायः सभी मनुष्य प्रगति चाहते हैं । शायद ही कोई अभागा या मूर्ख ऐसा होगा, जो प्रगति न चाहता हो। यह बात दूसरी है कि लोगों के प्रगतिसम्बन्धी केन्द्रबिन्दु भिन्न-भिन्न हों। कोई आर्थिक प्रगति चाहता है, तो कोई शारीरिक । किसी को राजनैतिक प्रगति के विषय में आकर्षण है, तो किसी को सामाजिक प्रगति सम्बन्धी रुचि है। कई लोग धार्मिक-साम्प्रदायिक प्रगति के लिए लालायित हैं तो कई आध्यात्मिक प्रगति के इच्छुक हैं। प्रगति के इन विविध मनोनीत केन्द्रबिन्दुओं में से मनुष्य जिस क्षेत्र की प्रगति चाहता है, उसके लिए साधन जुटाता है और तदनुकूल प्रयत्न भी करता है। प्रगति में सफलता क्यों नहीं ?
इतना सब होते हुए भी लोग अपने-अपने अभीष्ट विषय में प्रगति की आकांक्षा और तदनुकूल प्रयत्न भी करते हैं, फिर भी प्रायः देखा जाता है कि वे सदा सफल नहीं होते, भरसक परिश्रम करने पर भी वे पिछड़ कर रह जाते हैं । प्रश्न होता है, ऐसा क्यों होता है ? अवश्य ही कोई कारण होगा, जो अग्रसर होते हुए चरणों को यथास्थान रोक लेता है। या तो प्रगति के लिए यथेष्ट एवं पर्याप्त साधना नहीं हुई होगी। या फिर समुचित साधन नहीं अपनाए होंगे ? अथवा प्रगति में जो अवरोधक तत्व हैं, उनका ज्ञान न होने से अन्धाधुन्ध गति की होगी। अथवा प्रगति में साधकबाधक तत्त्वों की ठीक जानकारी नहीं होगी । प्रगति को रोकने वाला कोई
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