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५८ तमसो मा ज्योतिर्गमय सुविधा एवं सुकुमारता के चक्कर में पड़कर वह परावलम्बी बन जाता है । यह परावलम्बीपन आगे चलकर उसके लिए ही दुःखदायी एवं मानसिक संताप का कारण बन जाता है । विरोधों और अवरोधों से घबराओ मत
___ कई लोग सत्कार्य करते हैं, परन्तु उनमें जब विरोध या अवरोध आते हैं, अथवा कठिनाइयाँ या कसौटियाँ आती हैं, तो घबरा उठते हैं । परन्तु घबरा जाने से मानसिक शान्ति भंग हो जाएगी। इसके बदले विरोधों और अवरोधों की परवाह किये बिना शान्ति और धैर्यपूर्वक सत्कार्य करते रहना चाहिए । सत्कार्य करने में विघ्न बाधाएँ, मुसीबतें या कठिनाइयाँ तो आती ही हैं । बल्कि मुसीबतें मानव जीवन में अनिवार्य हैं । अवरोध, संकट या विरोध से बिचलित नहीं होना चाहिए, न ही उनके आगे घुटने टेकने चाहिए; क्योंकि ये सब व्यक्ति की निष्ठा, श्रद्धा और धैर्य की कसौटी करने आते हैं । जिस समय विरोध या अवरोध आएँ, उस समय व्यक्ति को अपनी इच्छाशक्ति मजबूत बनाकर दृढ़तापूर्वक सत्कार्य करने का निश्चय करना चाहिए। अगर व्यक्ति उस समय विरोधों, कठिनाइयों या मुसीबतों को देखकर दूर भाग जाएगा, या सत्कार्य छोडकर आलसी बनकर चुपचाप बैठ जाएगा तो वह किसी भी सत्कार्य को कर नहीं पाएगा । उसके मन में विरोधों या अवरोधों से हार खाने का कांटा सदैव बना रहेगा।
विरोधों या अवरोधों के समय शान्त और स्वस्थ मन से परमात्मा से उन्हें सहने की शक्ति की प्रार्थना करनी चाहिए। श्रेष्ठ प्रेरणादायक पुस्तकों के स्वाध्याय, सत्संग या जप में स्वयं को लगाए रखना चाहिए, ताकि आत्मबल प्राप्त हो। दूसरों की पंचायत में न पड़ो
कई बार मनुष्य दूसरों के कार्य में मगजपच्ची करता रहता है । दूसरे क्या करते हैं ? या किस प्रकार चलते हैं ? इसकी आलोचना या टीका टिप्पणी करके अशान्त और अस्वस्थ होना, स्वयं चलाकर अशान्ति को मोल लेना है। मानसिक शान्ति के लिए यह अनिवार्य है कि मनुष्य दूसरों के काम में हस्तक्षेप न करे ।। जो विश्व के समस्त पदार्थों से मानसिक शान्ति का मूल्य अधिक मानता है, उसे इस नियम का दृढ़ता से पालन करना चाहिए।
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