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________________ ४६ तमसो मा ज्योतिर्गमय के संचालन में जठराग्नि काम करती है। प्रकाश और गर्मी से सूर्य अत्यन्त तेजस्वी प्रतीत होता है । चूल्हे में आग की गर्मी में तप कर ही सारा आहार पाचन योग्य, स्वादिष्ट एवं शक्तिवर्द्धक बनता है । मिठी गर्म होने पर पत्थर हो जाती है । कच्ची मिट्टी से बनी ईंटों से निर्मित मकान वर्षा में गलने लग जाता है, किन्तु वे ही ईंटें आग में पका ली जाती हैं तो, उनसे बनी इमारतें वर्षों चलती हैं। चूना और सीमेंट भी कंकड़-पत्थरों का आग में पकाया हुआ चूरा है। इन्हें कच्चा पीस कर इमारत में लगाया जाए तो काम नहीं चलेगा । अतः पकी हुई ईंटों और सीमेंट में मकान को चिरस्थायी बना देने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। खान में से मिट्टी मिली हुई लोहा, ताम्बा आदि कच्ची धातुओं को भट्टी में तपाया जाता है, तभी वे शुद्ध बनती हैं और काम में आती हैं । कच्चे लोहे को अधिक मजबूत और फौलाद बनाने के लिए उसे तपाया जाता है । काटने वाले शस्त्रों तथा औजारों की धार अधिक गर्मी देकर तेज एवं सूस्थिर की जाती है। रसायनशास्त्री अभ्रक भस्म, बंग भस्म, प्रवाल भस्म, लौह भस्म आदि गुणकारी भस्में उन वस्तुओं को तपा कर गर्म कर ही बनाते हैं। आग के सम्पर्क से ही दीपक प्रकाशवान होता है। आग में तपा कर ही सुनार विविध प्रकार के आभूषण बनाता है। अन्य धातुओं को आग में डालकर कोमल करने पर ही उनके औजार या उपकरण बनाये जाते हैं। गर्मी से ही वनस्पतियाँ विकसित होती हैं, अनाज पकते हैं। सामान्य पानी को औषधोपयोगी बनाने अर्थात्-डिस्ट्रिल्ड वाटर बनाने हेतु उसे भट्री पर चढ़ाया जाता है और भाप बनाकर अर्क निकाला जाता है। व्यायाम से उत्पन्न गर्मी से ही शरीर की मांसपेशियाँ बलिष्ठ बनती हैं । इसी प्रकार तपस्या द्वारा तन-मन एव आत्मा को तपाने से उनमें भी सर्वतोमुखी प्रखरता उत्पन्न होती है। मनुष्य की जड़ता एवं कठोरता को सुकोमलता, उदारता एवं नम्रता में बदलने और उसे आत्म साधना के ढाँचे में ढालने ले लिए तपश्चर्या को अपनाना अनिवार्य है। उसके बिना आरामतलबी और सुखसुविधा से भरे वातावरण में पले लोग अविकसित, निष्क्रिय और आलसी बन जाते हैं। उनकी क्षमताएँ विकसित नहीं होतीं। उस्तरे पर धार रखने से ही वह पैना होता है, उसमें चमक दीखने लगती है, उसे ऐसे ही एक कोने में पड़ा रहने दिया जाए तो जंग चढ़ती जाएगी, और एक दिन वह नष्ट हो जाएगा। इसी प्रकार तन-मन को तपस्या की धार दी जाए तो वे पैने और प्रखर हो जाएँगे । फौज के लोगों को नित्य 'परेड' कराते हैं तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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