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३६ तमसो मा ज्योतिर्गमय
अच्छी से अच्छी मोटर भी अनाड़ी ड्राइवर के हाथ में पड़कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, उसे स्वयं तथा उसमें सवार को भी चोट खाने का संकट आ पड़ता है । इसी प्रकार अधिकांश अनाड़ी एवं दुर्बुद्धि आत्मा अपनी जीवन रूपी मोटर बार-बार दुर्घटनाग्रस्त करते हैं, अपने सम्पर्क में आने वाले परिवार, समाज एवं राष्ट्र को भी क्षति पहुंचाते हैं। इसलिए अधिक साधन जुटाने, परिस्थिति अनुकूल होने तथा श्रेष्ठ व्यक्तियों का सान्निध्य मिलने पर भी यदि मनःस्थिति ठीक नहीं है, तो वह व्यक्ति आत्मा का उत्थान करने के बदले प्रायः पतन ही करता है । यह देखा गया है, कि जिन लोगों के पास साधनों की प्रचुरता होती है, शारीरिक-बौद्धिक समर्थतासक्षमता भी होती है, वे लोग आलस्य, अकर्मण्यता और पुरुषार्थहीनता के चक्कर में पड़कर आत्मा के उत्थान एवं विकास के अवसरों को चूक जाते हैं
और जिनकी मनःस्थिति ठीक होती है, वे अल्प साधनों और अभावग्रस्त स्थिति में होते हुए भी आत्मा के उत्थान एवं विकास के प्रत्येक अवसर का उपयोग करते हैं। भाग्य का लेखा : शक्तियों के उपयोग के अधीन
जीवन का लेखा-जोखा भी अपनी शक्तियों के दुरुपयोग-सदुपयोग पर तैयार होता है। यदि व्यक्ति में आत्मोत्कर्ष की लगन, उत्साह, कमठता, दृढ़ता, धैर्य, साहस एवं श्रमनिष्ठा है तो अवश्य ही वह अपने भाग्य को बदल डालेगा।
____ स्पष्ट है कि आन्तरिक मनःस्थिति गई गुजरी हो तो साधन-सुविधाओं की प्रचुरता से आत्मिक प्रगति और सुख-शान्ति नहीं हो सकती। इसके विपरीत, सद्गुण सम्पन्न मनःस्थिति हो तो स्वल्प साधन सुविधाएँ होने पर उनके सदुपयोग से आत्मिक प्रगति का पथ प्रशस्त हो सकता है । स्वयं ही उत्थान एवं पतन पर ले जाने वाला
बहुधा मनुष्य अपने असंयम, स्वाद, लोलुपता, नशैली वस्तुओं का उपयोग, खर्चीला एवं भड़कीला रहन-सहन, अविवेक, अदूरदर्शिता आदि दुगुणों के कारण आत्मा को स्वयं ही पतन के रास्ते पर ले जाता है। यदि चिन्तन का सही तरीका, स्वभाव में असाधारण उत्कृष्टताएँ तथा चारित्रनिष्ठा अपनाई जाए तो व्यक्ति अपनी आत्मा को उत्थान-पथ पर ले जा सकता है। दोनों ही मार्ग उसके सामने स्पष्ट हैं। वह स्वयं ही अपना भाग्य विधाता है। उत्थान और पतन, इन दोनों में से चाहे जो मार्ग अपना सकता है।
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