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तमसो मा ज्योतिर्गमय
नीय आचरण व्यक्ति की असावधानी ( प्रमादावस्था) का लाभ उठाकर अवैध कब्जा जमा लेते हैं । अगर उन्हें दुत्कार दिया जाए या अन्तरात्मा में प्रविष्ट होते ही भगा दिया जाए तो उन्हें पलायन करना ही पड़ता है । व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध वे टिक ही नहीं सकते ।
इसी प्रकार प्रतिकूल परिस्थितियां आने पर अपनी प्रकृति, स्वभाव या दृष्टि बदल ली जाए तो उन बाह्य परिस्थितियों में आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन दिखाई दे सकता है। प्रस्तुत परिस्थितियाँ अनुकूल न होने पर भी उनके साथ तालमेल बिठाया जा सकता है । यही एक उपाय हैसंसार को, व्यक्ति को या परिस्थिति को अपनी अन्तरात्मा से बदल देने का, जिसके आधार पर व्यक्ति अपनी आत्मा का उत्थान कर सकता है ।
सूर्य अपने साथ सौरमण्डल के ग्रह - उपग्रहों को बाँधे रहता है, उन्हें साथ लेकर चलता है । मनुष्य भी एक सूर्य है, जो अपने स्तर के अनुसार वस्तु, व्यक्ति एवं परिस्थितियों को भी बाँधे रहता है, वह दृष्टिकोण को उच्चस्तरीय बना ले तो उन्हें साथ-साथ लेकर चल सकता है । ( अपने स्तर को उच्च बनाना ही परिस्थिति परिवर्तन का प्रमुख कारण है ।
मनुष्य की आत्म शक्ति इतनी प्रचण्ड है कि यदि मनुष्य उसे साथ लेकर विवेकपूर्वक अभीष्ट सन्मार्ग पर चल पड़े, तनिक-सी कठिनाइयों तथा प्रतिकुल परिस्थितियों को देखकर अधीर न हो तो उचित समय पर परिस्थिति को अनुकूल बनाने में अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है । अपने भाग्य का निर्माता मनुष्य स्वयं है ।
अपने कमरे में सूर्य की धूप एवं हवा अपनी मर्जी के बिना प्रविष्ट नहीं हो सकती । यदि मनुष्य दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर ले तो प्रचण्ड धूप एवं हवा का प्रवेश भी नहीं हो सकेगा । देखा गया है, कि केवल उसी स्टेशन को रेडियो पर सुना जा सकता है, जिस पर व्यक्ति सुई लगाता है । अन्य स्टेशनों के ब्रॉडकास्ट उस व्यक्ति के कानों में नहीं आ सकते, भले ही वे कितने ही जोरदार प्रसारण चला रहे हों । इनसे यह सिद्ध होता है कि मनुष्य जैसा चाहे, वैसा बन सकता है । वही अपने भाग्य का निर्माता - त्राता है । वह चाहे तो अपनी बुद्धि से अपने भाग्य को बिगाड़ सकता है और सद्बुद्धि तथा सत्प्रवृत्ति से उसे बना सकता है ।
इतिहास के पृष्ठ ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं, जिनसे यह सिद्ध
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