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२४ तमसो मा ज्योतिर्गमय आत्मगुणों में या आत्मशक्तियों में कोई अन्तर नहीं, किन्तु कर्मों के आवरण की दृष्टि से संसारी आत्मा और परमात्मा में अन्तर है । यों देखा जाय तो आत्मा में परमात्मा के गुण बीज रूप में निहित हैं। बीज में पूर्ण वृक्ष की सत्ता और शुक्राण में पूर्ण मनुष्य की सत्ता विद्यमान रहती है। आत्मसाधना से ज्ञानादि गुणों के विकसित होने पर ही उक्त बीज का विस्तार होने लगता है, जो एक दिन पूर्णता तक पहुँच जाता है। आत्मा को परिपूर्णता प्राप्त करना ही आत्मसाधना का लक्ष्या है।
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