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अध्यात्म-साधना के विविध पहलू
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छाया, सुगन्ध, मधुर फल एवं सुषमा के रूप में उपलब्ध होता है । माली की यह उद्यान-साधना सर्वतोमुखी सत्परिणाम ही प्रस्तुत करती है ।
साधनाशील व्यक्ति के आत्मा, तन, मन आदि मिलकर एक प्रकार का आध्यात्मिक उद्यान है । उसमें अनेक शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, भौतिक शक्तियाँ एवं विशेषताएँ हैं । उन्हें यदि आत्मिक प्रगति एवं अन्तिम लक्ष्य की ओर मोड़ा जाए, व्यवस्थित, विकसित और क्रमबद्ध किया जाए तो स्वयं अध्यात्म-साधक को उसके स्वादिष्ट फल-संतुष्टि, गहन तृप्ति, आनन्द एवं निश्चित सफलता के रूप में प्राप्त होता ही है । समाज एवं राष्ट्र को भी उसकी उत्तम साधना से लाभ मिलता है । इसके विपरीत यदि उन चित्तवृत्तियों और शरीरगत प्रवृत्तियों को निरंकुश, स्वच्छन्द, विशृंखलित एवं अव्यवस्थित रूप से छोड़ दिया जाए, अपने तन, मन, वचन आदि को कर्त्तव्यनिष्ठ बनकर संभाला न जाए, उलटें, उन्हें भौतिकता और विलासिता की ओर जाने दिया जाए तो अवश्य ही वे उद्धत, उच्छृंखल, भौंड़े-भद्दे एवं गंवारू स्तर पर बढ़ते हैं और दिशाविहीन, लक्ष्यरहित, उच्छृंखलता के कारण जंगली झाड़ियों की तरह उस समूचे क्षेत्र को अगम्य एवं कण्टकाकीर्ण बना देते हैं । अतः अध्यात्म साधना माली की उद्यान-साधना के समान हो, तभी मानव जीवन सच्चिदानन्दरूप बन सकता है ।
अध्यात्म साधना : स्वयंस्फूर्त शक्ति से
वास्तव में देखा जाए तो अध्यात्म-साधना किसी देवी देवता, भगवान् या शक्ति विशेष को प्रसन्न करने, उनके आगे गिड़गिड़ाने, उनकी अनुनयविनय करने या उनको भेंट - उपहार चढ़ाने से नहीं होती, वह अपने ही भीतर बी-छिपी एवं सुषुप्त शक्तियों के खजाने को खोदकर निकालने, अपनी अनेकानेक विशेषताओं और विभूतियों को जागृत ( प्रकट) कर देने से होती है । साधना का क्षेत्र अन्तर्जगत् है । अपने ही भीतर इतने ज्ञान-दर्शनचारित्र तप एवं वीर्य के, आत्मिक सौख्य के रत्नों की निधि गड़ी हुई है कि उस रत्नाकर में स्वयं गोता लगाकर ही आध्यात्मिक धन से सुसम्पन्न बना जा सकता है । फिर किसी बाहर वाले से मांगने एवं याचना करके दीनता दिखाने से और अपनी आत्मा को हीन मानने से क्या लाभ? मनुष्य की आन्तरिक क्षमताएँ ही आत्मदेवता के वरदान हैं । तत्त्वज्ञानी महापुरुषों ने साधना के माध्यम से इस आन्तरिक आत्मनिधि को करतलगत करने का विधि-विधान बताया है । यही आध्यात्मिक साधना का उद्देश्य है ।
जो साधक आध्यात्मिक साधना के साथ देवी-देवों या किसी विशिष्ट
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