SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ तमसो मा ज्योतिर्गमय इस प्रकार का आग्रह या अधैर्य उसके मन में तनिक भी नहीं होता। फसल अपने समय पर पकेगी, यह दृढ़ विश्वास, आशा और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा किसान के जीवन का अंग है । बीज बोने के बाद झटपट अनाज का ढेर कोठे में भरने की आतुरता उसे नहीं होती। इतने मन अन्न निश्चित रूप से होना ही चाहिए, इतने लम्बे चौड़े मनसूबे बाँधना भी किसान अनावश्यक समझता है। मनोयोगपूर्वक सतत उसकी श्रम साधना चलती रहती है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डीदल द्वारा हानि, कम सिंचाई इत्यादि विघ्न बाधाएँ या अवरोध उसकी कृषि-साधना में न आते हों, सो बात भी नहीं है, किन्तु वह बिना घबराए, बिना पलायन किये, उनसे भी यथाशक्ति यथावसर निपटता है । मगर कृषि साधना की उपेक्षा वह कदापि नहीं करता। कृषि के क्षेत्र में यथावश्यक श्रम किये बिना उसे चैन नहीं पड़ता। फिर भी किसान के मन में किसी प्रकार की असंतुष्टि, व्याकुलता, दूसरे की तरक्की के प्रति ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा अथवा दूसरे को नीचे गिराने की दुर्भावना नहीं होती । समयानुसार फसल पकती है । अनाज उत्पन्न होता है । वह सन्तोषपूर्वक उसे घर ले जाता है। जो कुछ भी मिला उसे प्रकृति का उपहार समझकर अपनाता है। वह भगवान को, किसी देवी-देव को या अन्य किसी भी निमित्त को कोसता या भला-बुरा कहता नहीं। यही है किसान की साधना, जिसे वह होश संभालने के दिन से लेकर आयु-पर्यन्त सतत निष्ठापूर्वक करता है । न विश्राम, न थकान, न ऊब, न अन्यमनस्कता और न पलायनवृत्ति । साधना कैसे की जाती है और साधक को किन गुणों से सम्पन्न होना चाहिए ? यह किसान से सीखा जा सकता है। माली की साधना की तरह अध्यात्म साधना हो जंगलों में कंटीले झाड़-झंखाड़ उगते हैं। वे बेढंगी रीति से छितराते हए उस भूमि को कंटकाकीर्ण बना देते हैं। इसी प्रकार जंगल में विशृंखलित अव्यवस्थित एवं अस्त-व्यस्त स्थिति में कुछ न कुछ उत्पादन या पेड़ पौधों का विकास होता है, परन्तु वह किस गति से, किस क्रम से या किस दिशा में चलेगा, यह नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत किसी चतुर माली की देखरेख में व्यवस्थित ढंग से लगाए गए पौधे सुरम्य उद्यान बन कर फलतेफूलते हैं। प्रत्येक पौधे को क्रमबद्ध लगाने, उसे सींचने, आसपास के फालतू घास या कचरे को उखाड़ फेंकने तथा निरन्तर संभालने की सजग कर्तव्यनिष्ठा माली की उद्यान-साधना है। जिसका प्रतिफल उसे सम्मान के रूप में एवं पेड़ पौधों के हरे-भरे फले-फूले सौन्दर्य के रूप में, सर्वसाधारण को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy