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________________ नमस्कार महामन्त्र की साधना १३ प्रस्तुत पद में पृथ्वी, जल, वायु और आकाश इन चारों तत्वों का समन्वय है। इस पद का रंग निरभ्र आकाश की तरह नीला है। नीला रंग शांति प्रदान करता है । इस पद में अग्नि तत्त्व के वर्ण का अभाव है। जिसके कारण साधक के अन्तर्मानस में सहज शीतलता, समताभाव का विकास होता है। साधना की दृष्टि से इस पद का ध्यान आनन्द केन्द्र यानि हृदय कमल में करना चाहिए। पूर्व की तरह इस पद की साधना के भी चार चरण हैं । प्रथम चरण में साधक अक्षरों का ध्यान करता है । दूसरे चरण में पूरे पद का ध्यान करता है । तृतीय चरण में पद के साथ ही उपाध्याय के गुणों का भी चिन्तन होता है । और चतुर्थ चरण में उपाध्याय के स्वरूप का ध्यान होता है । यह ध्यान हृदय कमल में निरभ्र आकाश के रंग का किया जाता है । नीले रंग का ध्यान आत्म साक्षात्कार में सहायक है। इसके ध्यान से चित्त एकाग्र बनता है तथा समाधि सम्प्राप्त होती है। यदि अन्तर्मानस में क्रोध की आँधी आ रही हो तो नीले रंग के साथ हृदय कमल में उपाध्याय का ध्यान किया जाय तो क्रोध नष्ट हो जायेगा और क्षमा भाव जागृत होगा। णमो लोए सव्व साहूणं" यह पांचवां पद है । इस पद के नौ अक्षर हैं, नो स्वर हैं, नौ व्यंजन हैं । तीन आनुनासिक व्यंजन हैं और एक अनुनासिक स्वर है। इस प्रकार इसमें अठारह वर्ण हैं। तत्त्व की दप्टि से ‘णमो' 'ह' 'ण' में आकाश तत्त्व है। 'लो' में पृथ्वी तत्त्व है। 'ए' में वायू तत्त्व है । और 'स' 'व्व' 'सा' में जल तत्त्व है। इस प्रकार प्रस्तुत पद में पृथ्वी, वायु, जल और आकाश इन चारों तत्त्वों का समन्वय है । साधना की दृष्टि से णमो लोए सव्वसाहूणं का ध्यान शक्ति केन्द्र अर्थात् नाभि कमल पर करना चाहिए । इस पद का वर्ण कस्तूरी की तरह चमकदार काला है। यद्यपि सामान्य मानवों की दृष्टि से श्याम वर्ण अशुभ माना जाता है । पर योग साधना की दृष्टि से चमकदार श्याम वर्ण अवशोषक है। इस रंग की यह विशेषता है कि अन्दर की ऊर्जा को बाहर जाने नहीं देता और बाहर का कुप्रभाव अन्दर प्रवेश नहीं करने देता । नाभि कमल पर पूर्व की तरह ‘णमो लोए सव्वसाहूणं' का चार चरणों में ध्यान किया जाता है । इस ध्यान से साधक में कष्ट सहिष्ण ता और परीषहों को सहन करने की अद्भुत क्षमता प्राप्त होती है । बाह्य निमित्तों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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