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१२ तमसो मा ज्योतिर्गमय विशुद्ध और विशुद्धतर बनता जाता है। इस पद की साधना से शाश्वत सुख प्राप्त होता है । कार्य करने की शक्ति पैदा होती है। ज्ञान तथा दिव्य दृष्टि का विकास होता है।
"णमो आयरियाणं" यह तीसरा पद है। इस पद के सात अक्षर हैं । इसमें सात स्वर हैं, पाँच व्यंजन हैं, पाँच नासिक्य व्यंजन है और पाँच ही नासिक्य स्वर हैं । प्रस्तुत पद में तत्त्व की दृष्टि से ‘णमो' और 'णं' आकाश तत्त्व है । 'आ' 'य' में वायु तत्त्व है । 'रि' में अग्नि तत्त्व है। इस प्रकार इस पद में वायु, अग्नि और आकाश ये तीनों तत्त्व हैं। इस पद का रंग पीला है । पीला रंग साधक के ज्ञानवाही तन्तुओं को अधिक संवेदनशील और शक्तिशाली बनाता है । दीप शिखा की तरह यह रंग ज्ञानवाही और क्रियावाही तन्तुओं को सक्रिय करता है।
णमो आयरियाणं पद का ध्यान विशुद्धि केन्द्र यानि कंठ स्थान पर किया जाता है। कंठ स्थान पर कल्पना से दीप ज्योति की तरह पीत वर्ण में पहले की तरह ही “ण” अक्षर लिखकर ध्यान किया जाता है। उसके पश्चात 'मो' फिर 'आ' 'य' 'रि' 'या' 'णं' इन सभी वर्गों का ध्यान किया जाता है। इस ध्यान में अक्षरों को विशाल और सूक्ष्म बनाया जाता है। दूसरे चरण में सम्पूर्ण पद का ध्यान कंठ स्थान में किया जाता है। तीसरे सोपान में आचार्य पद के साथ उनके विविध गुणों का चिन्तन होता है। और चतुर्थ सोपान में आचार्य के स्वरूप पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। शरीर के कण-कण में स्व पर प्रकाशी पीली दीप शिखा का अनुभव करें। अपने शरीर में से निकलते हुए पीले रंग को प्रभा को निहारें। पीला रंग ज्ञान वृद्धि में सहयोगी है । ज्ञान तन्तुओं को यह रंग बलशाली बनाता है। कंठ स्थान पर ध्यान केन्द्रित होने से आवेगों का सहज नियन्त्रण होता है।
और चित्त वृत्तियाँ उपशान्त होती हैं । आधुनिक वैज्ञानिक कंठ स्थान पर थाइराइड ग्रन्थि मानते हैं । जो आवेगों की नियामक है । नमो आयरियाणं को साधना से बौद्धिक शक्तियाँ विकसित होती हैं । प्रातिभ और अतीन्द्रिय ज्ञान उपलब्ध होता है और शरीर में अपूर्व सुगन्ध पैदा होती है।
___ "नमो उवज्झायाणं" यह चतुर्थ पद है। इस पद में सात अक्षर, सात स्वर हैं, सात व्यंजन हैं, पांच नासिक्य हैं और एक नासिक्य स्वर है। तत्व की दृष्टि से “णमो और णं" में आकाश तत्व है। 'उ' 'ज्' पृथ्वी तत्त्व है । 'व' 'झा' में जल तत्त्व है और 'य' में वायु तत्व है। इस प्रकार
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