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________________ नमस्कार महामन्त्र की साधना ११ पुरुषाकृति पर ध्यान किया जाय । ललाट में, जिसे ज्ञान केन्द्र कहा जाता है उस पर ध्यान का अभ्यास किया जाता है । इस तरह णमो अरिहंताणं का ध्यान करने से मानसिक, शारीरिक, स्वस्थता के साथ ही शुद्ध, शुभ भाव जागृत होते हैं, और चेतना जागृत होती है। प्रस्तुत पद की साधना से साधक का आवरण और अन्तराय कर्म का क्षय होता है। बुराइयाँ नष्ट होती हैं और स्मरण शक्ति प्रबल होती है। "णमो सिद्धाणं" यह दूसरा पद है। इसके पाँच अक्षर हैं । पाँच स्वर और छः व्यंजन हैं। तीन नासिक्य व्यंजन और दो नासिक्य स्वर हैं। इस प्रकार इस पद में ग्यारह वर्ण हैं । तत्व की दृष्टि से प्रस्तुत पद में “णमो" और "णं" में आकाश तत्व है। 'स' और 'द' ये जल तत्व हैं। 'ध' पृथ्वी तत्व है। और 'इ' अग्नि तत्व है। इस प्रकार प्रस्तुत पद में पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश इन सभी तत्वों का संयोग हुआ है "सिद्धाणं" में जो "द्धा" है, वह धारणा शक्ति, दमन शक्ति की अभिवृद्धि करता है और साथ ही इसमें जल तत्व को प्रधानता होने से ऊष्मा कम करता है। और शिथिलता की अभिवृद्धि करता है। ध्वनि विज्ञान की दृष्टि से "द्धा" के उच्चारण से विलक्षण ऊर्जा पैदा होती है । सिद्धाणं पद का रंग लाल है, वह बाल सूर्य की तरह अरुण वर्ण वाला है। साधना की दृष्टि से णमो सिद्धाणं पद का ध्यान दर्शन केन्द्र यानि सहस्रार-मस्तिष्क में करना चाहिए। जिस प्रकार णमो अरिहंताणं का ध्यान, अक्षर ध्यान, पद ध्यान, पद और अर्थ ध्यान व अरिहंत स्वरूप का ध्यान किया जाता है वैसे ही णमो सिद्धाणं का भी ध्यान किया जाता है। यह ध्यान सहस्रार मस्तिष्क में बाल सूर्य की तरह लाल रंग में 'ण' 'मो' 'सि' 'द्धा' 'णं' लिखकर किया जाता है। द्वितीय में सम्पूर्ण पद लिखा जाता है। तृतीय सोपान में "णमो सिद्धाणं" पद के साथ ही सिद्धों के गुणों का चिंतन किया जाता है । सिद्ध, अविनाशी, अविकारी, अनन्त गुणों से युक्त हैं । और चतुर्थ सोपान में सम्पूर्ण "सिद्ध स्वरूप" का ध्यान करें। सम्पूर्ण शरीर के कण-कण में बाल सूर्य जैसी ज्योति का अनुभव करें। इस प्रकार ध्यान करने से साधक का प्रमाद नष्ट होता है । जड़ता मिटती है । और उसके जीवन में उल्लास, उत्साह और स्फूर्ति का संचार होता है । इस साधना में अक्षरों को दीर्घ और सूक्ष्म किया जाता है । किन्तु बाल सूर्य की तरह तेज बढ़ता रहता है। जिससे आन्तरिक जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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