________________
१० तमसो मा ज्योतिर्गमय करते । उसमें आकाश की तरह विराट्ता होती है । रंग की दृष्टि से णमो अरिहंताणं का रंग श्वेत है । श्वेत वर्ण शांति, समता, शुद्धता, सात्विकता का पावन प्रतीक है।
साधना की दृष्टि से साधक को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की शुद्धि करके पद्मासन कायोत्सर्ग मुद्रा में बैठना चाहिए । और सम्पूर्ण शरीर को स्थिर कर ज्ञान केन्द्र (आज्ञा चक्र) ललाट-भ्र मध्य में ध्यान को केन्द्रित करें और साथ ही स्फटिक की तरह श्वेत वर्ण की कल्पना करें। सर्वप्रथम णमो अरिहंताणं के एक-एक अक्षर पर ध्यान केन्द्रित करें। नासाग्र पर दृष्टि रखे या आँखें बन्द कर सर्व प्रथम 'ण' अक्षर का ध्यान करें । कल्पना करें कि 'ण' अक्षर एक मीटर लम्बा है, चमकदार है। उसमें से चमचमाती हुई प्रकाश की किरणें प्रस्फुटित हो रही हैं। सम्पूर्ण आकाश उस प्रकाश किरण से जगमगा रहा है। धीरे-धीरे आकार को कम करते जायें और वह आकार एक सूक्ष्म बिन्दु की तरह हो जाय । आकार छोटा होगा, पर प्रकाश अधिक से अधिक तीव्र होगा । उसकी चमक और दमक उत्तरोत्तर बढ़ती चली जायेगी। इसी तरह 'ण' 'मो' 'अ' 'रि' 'हं' 'ता' 'णं' को कल्पना से लिखें, और एक-एक अक्षर का ध्यान करें। यह ध्यान अक्षर ध्यान कहलाता है।
प्रस्तुत पद की साधना का दूसरा चरण है सम्पूर्ण णमो अरिहंताणं इस पद का ध्यान करना। सर्वप्रथम बड़े-बड़े अक्षरों में इस पद को अनन्त आकाश में ध्यान की कलम से लिखा जाय और शनैः शनैः आकार को घटाया जाय और चमक बढ़ाई जाय । अन्त में एक बिन्दु पर प्रकाश को लाया जाय । इसमें घटाने और बढ़ाने का क्रम पुनः-पुनः किया जाय । इस पद-ध्यान के समय पलकें पूरी बन्द रखी जायें और सम्पूर्ण आकाश मण्डल स्फटिक की तरह श्वेत वर्णी दिखलाई देना चाहिए। इस ध्यान की साधना का केन्द्र भी भ्र मध्य ही है।।
तीसरा चरण है “णमो अरिहंताणं" इस पद को श्वेत वर्ण में कल्पना से लिखें, साथ ही णमो अरिहंताणं पद के अर्थ पर भी चिन्तन करें। अरिहंत अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य के धारक हैं। अठारह दोषों से मुक्त हैं। सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं। चिन्तन के साथ ही ललाट में लिखे हुए श्वेत रंग में णमो अरिहंताणं को भी देखेंगे। और अर्थ का भी चिन्तन करेंगे।
चतुर्थ चरण है स्फटिक के समान श्वेत वर्ण वाले निर्मल, अरिहंत को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org