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________________ हिंसा के स्रोत और उनमें तारतम्य २२६ बार पठान ने खुद ने देख लिया, पठान की पत्नी ने फिर उसमें जोश भरा। गुस्से में आकर पठान छुरा लेकर घर से दौड़ा । दूर से पठान को छुरा लेकर घर की ओर आते देख बनिया समझ गया कि वह लड़के को मारने के लिए आ रहा है। उसने आव देखा न ताव अपने लड़के को पकड़ कर दो-चार थप्पड़ जमा दिये, एक लट्ठी भी जमा दी। लड़का जोर से रोता-चिल्लाता घर से निकला । लड़के की मां ने लड़के का पक्ष लेकर कहा-"क्या आज मार ही डालोगे इसे ?" बनिये ने कहा-"तू नहीं समझती। पठान मारने के लिए छुरा लेकर आ रहा है।" बनिया अपने लड़के को डांटता-फटकारता हुआ और भला-बुरा कहता हुआ उसके पीछे यों कहता दौड़ रहा था कि तूने बिना पूछे पठान की बकरी दुही क्यों ? पर लड़का रोता चिल्लाता जा रहा था। उधर से पठान निकट आया और उसने जब लड़के को पिता द्वारा पीटते और लड़के को रोते देखा तो उसके दिल में दया उमड़ी। उसने बनिये का हाथ पकड़ कर कहा-“सेठ ! जाने दो, क्या हो गया मेरी बकरी दुह ली तो ! बच्चा है, इसे मारो मत ।" इस प्रकार पठान का रोष ठंडा हो गया, वह लड़के को प्रेम से पुचकार कर अपने घर ले आया । बनिये को समझा-बुझाकर विदा किया। इस प्रकार पठान के निमित्त से बनिये के लड़के की हत्या की जो संभावना थी, वह बनिये द्वारा अपने पुत्र के ताड़नतर्जन से टल गई और पठान का रोष ठंडा हो गया । यह है, भविष्य में होने वाली महाहिंसा के निवारण के लिए बनिये ने अपने लड़के के ताड़न-तर्जन रूप अल्प हिंसा को स्वीकार किया। बनिये द्वारा अपनाया हआ यह उपाय हर बार सफल ही होगा, ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। अहिंसा पालन के विषय में गलतफहमी आजकल गृहस्थ लोगों में कर्तव्याकर्त्तव्य के सम्बन्ध में बड़ी गलतफहमी फैल रही है । कई भाई सर्ववती मुनियों का आचार-विचार देख कर उनके जैसी सूक्ष्म अहिंसा का पालन करने को उद्यत हो जाते हैं, उधर स्थूल हिंसा उनके जीवन में गहरी घुसी हुई होती है । मुनिराज कई बातें (परोपकार आदि की) अपनी मर्यादा में रह कर ही कर सकते हैं, किन्तु इसका अनुसरण करके गृहस्थ द्वारा परोपकार, दया, सेवा आदि को छोड़ देना विधि मार्ग का अज्ञान है। सद्गृहस्थ श्रावक के लिए द्वीन्द्रिय से पंचेन्दिय तक के त्रसजीवों की स्थूल हिंसा का त्याग है। स्थावर एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा की मर्यादा करता है । एकेन्द्रिय जीवों की रक्षा के बहाने पंचेन्द्रिय पशुओं और विशेषतः मानवों की रक्षा और दया को भूल रहे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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