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________________ नमस्कार महामन्त्र की साधना नमस्कार महामन्त्र जैन धर्म का मूल मन्त्र है। यह मन्त्र बहुत ही शक्तिशाली है । इस महामन्त्र की संरचना बहुत ही महत्त्वपूर्ण और अलौकिक है। इस मन्त्र में किसी व्यक्ति विशेष की स्तुति नहीं है। इसमें तो आत्मा से परमात्मा की ओर बढ़ने वाले उन विशिष्ट साधकों का उल्लेख है जो गुणों के पुञ्ज हैं । यह मन्त्र पूर्णतः शुद्ध और सात्विक है। इस मन्त्र के जप और ध्यान से किसी भी प्रकार के अनिष्ट की सम्भावना नहीं है। अपितु इस मन्त्र के जप से एक प्रकार की ऊर्जा समुत्पन्न होती है जो कर्म मल को जलाकर नष्ट कर देती है । जिससे आत्मा विशुद्ध बन जाता है । यह पूर्ण विशुद्ध आध्यात्मिक मन्त्र है । अन्य मन्त्रों में देवी और देवताओं की आराधना की जाती है । लक्ष्मी की उपासना करने वाले मन्त्र से लक्ष्मी प्राप्त होती है। और सरस्वती की उपासना करने वाले मन्त्र से बुद्धि प्राप्त होती है । दुर्गा आदि की उपासना करने वाले मन्त्र से शक्ति प्राप्त होती है । पर वे सभी मन्त्र एक सीमित शक्ति तक आबद्ध रहते हैं। परन्तु इस महामन्त्र में किसी व्यक्ति की उपासना नहीं है, अपितु गुणों की उपासना है । उसमें गुणों का उत्कीर्तन है । इस महामन्त्र के पैतीस अक्षर हैं। कहा जाता है कि एक-एक अक्षर के एक-एक हजार देव इष्टायक हैं। इस प्रकार पैंतीस अक्षरों के पैंतीस हजार देव इष्टायक हैं। इसलिए इस मन्त्र की महिमा और गरिमा अपार है । इस मन्त्र की आराधना से राग-द्वेष, विषय-कषाय क्षीण होते हैं तथा विशुद्ध आध्यात्मिक चेतना उबुद्ध होती है। इस महामन्त्र का महत्व इसलिए भी है कि श्रुत ज्ञान राशि का सम्पूर्ण वजाना पूर्व साहित्य में है और चौदह पूर्व का सार इस महामन्त्र में है। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो इस महामन्त्र में जिन शासन का सार है । इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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