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महामन्त्र : एक अनुचिन्तन ७ 'नमो लोए सव्व साहूणं' का रंग काला है। काला वर्ण अवशोषक है। शक्ति केन्द्र पर इस पद का जप करने से शरीर में प्रतिरोध शक्ति बढ़ती है।
इस प्रकार वर्गों के साथ नमोकार महागन्त्र का जप करने का संकेत मंत्रशास्त्र के ज्ञाता आचार्यों ने किया है। अन्य अनेक दृष्टियों से नमस्कार महामन्त्र के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। विस्तार भय से उस सम्बन्ध में हम उन सभी की चर्चा नहीं कर रहे हैं । जिज्ञासू तत्सम्बन्धी साहित्य का अवलोकन करें तो उन्हें चिन्तन की अभिनव सामग्री प्राप्त होगी और वे नमस्कार महामन्त्र के अद्भुत प्रभाव से प्रभावित होंगे।
नमस्कार महामन्त्र को आचार्य अभयदेव ने भगवती सूत्र का अंग मानकर व्याख्या की है। आवश्यकनियुक्ति में नियुक्तिकार ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है-पंच परमेष्ठियों को नमस्कार कर सामायिक करनी चाहिये । यह पंच नमस्कार सामायिक का एक अंग है। इससे यह स्पष्ट है कि नमस्कार महामन्त्र उतना हो पुराना है जितना सामायिक सूत्र। सामायिक आवश्यक सूत्र का प्रथम अध्ययन है। आचार्य देववाचक ने आगमों की सूची में आवश्यक सूत्र का उल्लेख किया है। सामायिक के प्रारम्भ में और उसके अन्त में नमस्कार मंत्र का पाठ किया जाता था। कायोत्सर्ग के प्रारम्भ और अन्त में भी पंच नमस्कार का विधान है। नियुक्ति के अभिमतानुसार नन्दी और अनुयोगद्वार को जानकर तथा पंच मंगल को नमस्कार कर सूत्र को प्रारम्भ किया जाता है। आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने पंच नमस्कार महामन्त्र को सर्व सूत्रान्तर्गत माना है। उनके अभिमतान्सार पच नमस्कार करने के पश्चात् ही आचार्य अपने मेधावी शिष्यों को सामायिक आदि श्रुत पढ़ाते हैं। इस तरह नमस्कार महामन्त्र सर्व सूत्रान्तर्गत है। आवश्यक सूत्र गणधरकृत है तो व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती) भी गणधरकृत ही है । इस दृष्टि से इस महामन्त्र के प्ररूपक तीर्थंकर हैं और सूत्र में आबद्ध करने वाले गणधर हैं। जिन आचार्यों ने महामन्त्र को अनादि कहा है, उसका यह अर्थ है-तत्त्व या अर्थ की दृष्टि से वह अनादि है ।
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