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________________ ६ तमसो मा ज्योतिर्गमय और अस्वास्थ्य, आवेगों की वृद्धि और कमी-ये सभी इन रहस्यों पर आधृत हैं कि हमारा किन-किन रंगों के प्रति रुझान है तथा हम किन-किन रंगों से आकर्षित और विकर्षित होते हैं। नीला रंग जब शरीर में कम होता है तब क्रोध की मात्रा बढ़ जाती है। नीले रंग की पूर्ति होने पर क्रोध स्वतः ही कम हो जाता है । श्वेत रंग की कमी होने पर स्वास्थ्य लड़खड़ाने लगता है। लाल रंग की न्यूनता से आलस्य और जड़ता बढ़ने लगती है। पीले रंग की कमी से ज्ञानतन्तु निष्क्रिय हो जाते हैं और जब ज्ञानतन्तु निष्क्रिय हो जाते हैं, तब समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। काले रंग की कमी होने पर प्रतिरोध की शक्ति कम हो जाती है। रंगों के साथ मानव के शरीर का कितना गहन सम्बन्ध है, यह इससे स्पष्ट है। 'नमो अरिहंताणं' का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ किया जाय । श्वेत वर्ण हमारी आन्तरिक शक्तियों को जागृत करने में सक्षम है। वह समूचे ज्ञान का संवाहक है। श्वेत वर्ण स्वास्थ्य का प्रतीक है। हमारे शरीर में रक्त की जो कोशिकाएँ हैं, वे मुख्य रूप से दो रंग की है- श्वेत रक्त कणिकाएं (w. B. C.) और लाल रक्त कणिकाएँ (R. B. C.)। जब भी हमारे शरीर में इन रक्त कणिकाओं का सन्तुलन बिगड़ता है तो शरीर रुग्ण हो जाता है । 'नमो अरिहंताणं' का जाप करने से शरीर में श्वेत रंग की पूर्ति होती है। 'नमो सिद्धाणं' का बाल सूर्य जैसा लाल वर्ण है। हमारी आन्तरिक दृष्टि को लाल वर्ण जाग्रत करता है। पीट्यूटरी ग्लेण्डस् के अन्तःस्राव को लाल रंग नियंत्रित करता है। इस रंग से शरीर में सक्रियता आती है। 'नमो सिद्धाणं' मन्त्र, लाल वर्ण और दर्शन केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करने से स्फति का संचार होता है। 'नमो आयरियाणं'-इसका रंग पीला है। यह रंग हमारे मन को सक्रिय बनाता है। शरीरशास्त्रियों का मानना है कि थायराइड ग्लेण्ड आवेगों पर नियंत्रण करता है। इस ग्रन्थि का स्थान कंठ है। आचार्य के पीले रंग के साथ विशुद्धि केन्द्र पर 'नमो आयरियाणं' का ध्यान करने से पवित्रता की संवृद्धि होती है । 'नमो उवज्झायाणं' का रंग नीला है। शरीर में नीले रंग की पूर्ति इस पद के जप से होती है । यह रंग शान्तिदायक है, एकाग्रता पैदा करता है और कषायों को शान्त करता है। 'नमो उवज्झायाणं' के जप से आनन्दकेन्द्र सक्रिय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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