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१४ हिंसा-अहिंसा की परख
अहिंसा एक विराट् शक्ति है । अहिंसा के बिना सृष्टि के अस्तित्व की कल्पना करना अविचारिता होगी । जीवन के हर मोड़ और हर प्रवृत्ति अहिंसा ने मनुष्य का साथ दिया है, हर परिस्थिति में उसने मनुष्य के अस्तित्व की रक्षा की है, जीवन की समस्याओं को सुलझाया है, और उसके कल्याण- पथ को प्रशस्त किया है । यही कारण है कि अहिंसा के जितने प्रयोग हुए हैं, शायद ही और किसी व्रत के प्रयोग हुए हों । इस कारण अहिंसा के उन विभिन्न प्रयोगों को समझना वर्तमान युग के अहिंसा-साधक को समझना अनिवार्य है । अहिंसा को भली-भांति समझने के लिए सर्वप्रथम उसके विरोधी हिंसा को समझना आवश्यक है । क्योंकि कई बार साधक हिंसा को अहिंसा समझ लेता है, और जो वास्तव में हिंसा नहीं है, उसे हिंसा समझता है । बहुत बार इसी भ्रम के कारण लोग गड़बड़ा जाते हैं । इसलिए हिंसा और अहिंसा को परखने का खास थर्मामीटर क्या है, इसे जान लेना चाहिए ।
चूँकि अहिंसा का मूल अर्थ सर्वप्रथम 'न' पर आधारित है, इसलिए मैं आपको हिंसा का ही स्वरूप बताऊँगा, ताकि आप हिंसा-अहिंसा का यथार्थ विवेक और नापतोल कर सकें ।
हिंसा के दो रूप - द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा
अहिंसावतार तीर्थंकरों एवं महान् आचार्यों ने मूल में हिंसा को दो रूपों में विभाजित किया है- द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा। आम तौर पर हिंसा का अर्थ यही समझा जाता है, जानबूझ कर या असावधानी से वाणी से गाली, अपशब्द, व्यंग या आक्रोश करके किसी को क्षुब्ध करना और
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