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तमसो मा ज्योतिर्गमय
अस्तित्व की परिधि में आ जाए। इन सबसे मनुष्य का आत्मधर्म जुड़ा हुआ है । पर अहिंसक केवल जीव हत्या का परहेज करके चुपचाप बैठ गया इसलिए यह आत्मधर्म उसके जीवन में आया नहीं । अहिंसा की गति इसी कारण रुकी हुई है, बल्कि वह लड़खड़ा रही है । अहिंसा के पुजारी ने हिंसा के जिन बाह्य उपकरणों से छुट्टी पाई थी, उनके भाई आन्तरिक उपकरण लौट कर उसके हृदय में खुल कर खेल रहे हैं । सर्वाधिक प्रभावशाली उपकरण 'स्वार्थ' को सर्वत्र बेरोकटोक प्रवेश का अनुमति पत्र मिल गया है । दैनंदन जीवन के मैदान में घृणा, ईर्ष्या, द्व ेष, बैर, मोह, तृष्णा आदि हिंसा की पलटन की परेड हो रही है और अहिंसा देवी चुपचाप मौन साधे बैठी है । अहंकार ने भी अहिंसा के आगे बढ़ने का रास्ता रोक लिया है। भगवान महावीर ने अहिंसा के पुजारी को हिंसा के इन सैनिकों से सावधान रहने को कहा था, पर उसने उनकी दी हुई सीख पर अधिक ध्यान नहीं दिया । अहिंसा जीवहिंसा न करने के मुकाम पर आकर ठिठक गई है, आगे बढ़ती ही नहीं । मनुष्य के पास करुणा, प्रेम, दया, सेवा, सहानुभूति, धैर्य, क्षमा, समता, संयम आदि का बहुमुल्य भंडार तो है, पर वह इसे खोलता ही नहीं । स्वार्थ और अहंकार के दो कपाटों से उसका दरवाजा बंद कर रखा है । उसका यह भंडार खुल जाए तो उसकी ऊर्जा प्रगट होने में कोई संदेह नहीं है | अहिंसा कहती है-कूदो, जूझ पड़ो इस हिंसा को पलटन से ! अपनी करुणा, समता और प्रेम को लेकर पहुँचोगे तो हिंसा के पैर उखड़ जाएँगे ।
आज अहिंसा का पथिक अपनी मंजिल के जिस पड़ाव पर है, वह तो तलहटी है । अभी तो काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी । आगे तो केवल आरोहण ही आरोहण है । नई ऊर्जा मनुष्य के हृदय से प्रगट होगी, तभी वह इस कठिन चढ़ाई को चढ़ सकेगा । आवश्यकता है, साहसपूर्वक अपनी ऊर्जा प्रगट करने के लिए अहिंसा के सहजीवी गुणों को लेकर आरोहण करने की । अहिसा की प्रगति का संकल्प ही अहिंसाधर्मी साधक को मंजिल की ओर बढ़ाएगा |
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