SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा का सर्वांगीण स्वरूप १७३ इसका मतलब है, अहिंसा केवल वाणी विलास की चीज है, या अहिंसा की व्याख्या केवल लाइब्रेरियों में बन्द रखने के लिए है, जीवन में उतारने के लिए नहीं । परन्तु यह अहिंसा के वस्तु स्वरूप को न समझने का परिणाम है । यदि भारत के स्वर्णिम अतीत पर दृष्टिपात किया जाय और हृदय पर हाथ रख कर ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो प्रतीत होगा कि अहिंसा के लिए अव्यवहार्य का आरोप यथार्थ नहीं है । जो वस्तु सहस्राब्दियों से लगातार व्यवहार में आती रही है, जिसे अतीत और वर्तमान के सभी तीर्थंकरों एवं साधकों ने जीवन में अवतरित करके बताया है, वर्तमान में भी अवतरित कर रहे हैं, भविष्य में भी अवतरित करेंगे, उसकी अव्यावहारिकता में सन्देह करना अपने अस्तित्व में सन्देह करना है । अत्यन्त प्राचीन जैनागम आचारांग सूत्र में इसके व्यवहार में आने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं से बेमि, जेय अतीता, जेय पडिपुन्ना, जेय अणागया तित्ययरा ते सत्वे एवं आइक्खंति, एवं भासें ति, एवं परूवेंति, एवं पण्णवेति सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सवे जीवा, सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघेतवा, न परियावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा, इत्थं विजाणह । नस्थित्थ दोसो, आरियवयण मेयं । मैं कहता हूँ, जो अतीत में, वर्तमान में और भविष्य में तीर्थंकर हुए हैं. हैं और होंगे, वे सब तीर्थंकर ऐसा कहते हैं-समस्त प्राण, भूत, जीव और सत्वों की हिंसा नहीं करनी चाहिए न उन पर अनुचित शासन करना चाहिए, न उन्हें गुलामों की तरह पराधीन बनाना चाहिए, न उन्हें परिताप देना चाहिए और न ही उनके प्रति किसी प्रकार का उपद्रव करना चाहिए। ऐसा समझो। इस अहिंसा धर्म में किसी प्रकार का दोष नहीं है, अहिंसा वस्तुतः आर्यों का सिद्धान्त है । अतः इसमें कोई सन्देह नहीं कि भगवान् महावीर जैसे महापुरुषों ने, गौतम जैसे गणधरों ने, आनन्द जैसे सम्भ्रान्त गृहस्थों ने तथा वर्तमान में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अहिंसा के सफल प्रयोग करके दिखलाए हैं। अनेकों जैन, बौद्ध, वैदिक साधकों ने यही नहीं ईसामसीह एवं हजरत मुहम्मद जैसे धर्मप्रवर्तकों ने अहिंसा की साधना करके अपने आपका और विश्व का कल्याण किया है, तब यह कसे कहा जा सकत है कि अहिंसा आकाश की चीज है, धरती की नहीं ? जिन्होंने अपने जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy