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________________ अहिंसा का सर्वांगीण स्वरूप मानवजाति को अगर सुखपूर्वक जीना हो, शान्तिपूर्वक अपना पार्ट अदा करना हो, सूरक्षापूर्वक आत्मविकास की साधना करनी हो तो केवल साधु-साध्वियों के लिए ही नहीं, केवल श्रावक-श्राविकाओं के लिए ही नहीं, प्रत्येक मनुष्य के लिए अहिंसा को अपनाना आवश्यक है । जब अहिंसा को अपनाना आवश्यक है तो सभी पहलुओं से अहिंसा का स्वरूप समझना भी जरूरी है। जब तक व्यक्ति अहिंसा का स्वरूप, उसकी मर्यादाएँ, जीवन में उसके प्रयोग की विधि आदि नहीं समझ लेगा, तब तक उसका यथार्थ आचरण करना कठिन है । इसीलिए श्रमण भगवान महावीर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है 'पढमं नाणं, तो दया' पहले दया और अहिंसा का सांगोपांग ज्ञान हो, तभी दया एवं अहिंसा का भलीभांति आचरण और प्रयोग हो सकता है। अहिंसा क्या है ? क्या नहीं ? __अहिंसा कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं है, कि उसको लेकर धर्मान्धता और कट्टरता फैलाई जाए, न अहिंसा कोई नारा या वाद है, जिसे लेकर राजनैतिक पार्टियों की तरह जनता को उकसाया जाय, भड़काया जाय, न ही अहिंसा कोई मूर्ति बनाकर पूजा करने की वस्तु है, न अहिंसा किसी मन्दिर, उपाश्रय या मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा या सत्संग भवन में स्थापित करने या उसकी जय बोलने की वस्तु है। अहिंसा परिभाषाओं में बन्द करने, ग्रन्थालय की अलमारियों में बन्द करके रखने की चीज नहीं है। अहिंसा को हम एक विचार मान सकते हैं, जीवन जीने की एक सुगम स्वाभाविक प्रक्रिया कह सको हैं । मनुष्य जीवन को सुख-शान्तिपूर्वक यापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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