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१३० तमसो मा ज्योतिर्गमय
ऐसे कार्यों में कूद पड़ना साहस नहीं, दुःस्साहस है । वास्तव में सत्साहस वह है, जिसमें आलस्य, प्रमाद जैसे रक्त को ठण्डा कर देने वाले दोषों को दूर कर किसी सत्कार्य में शारीरिक एवं मानसिक स्फूर्ति उत्पन्न करने वाली उमंग हो । इसका पहला निशाना अपनी उदासी, उपेक्षावृत्ति, आलस्यप्रमाद आदि पर होता है । इसके पश्चात् अम्यान्य दोष-दुर्गुणों को ढूंढ-ढूंढ़ उन्हें साफ करने और फेंक देने के रूप में अगला कदम उठाना पड़ता है । साहस जागे तो सत्प्रवृत्तियां उभरती हैं
लोगों का यह सोचना गलत है कि हम दुर्भाग्यग्रस्त हैं, और पिछड़े रहने के लिए ही बने हैं अथवा सहयोग और साधनों के अभाव में हम में ऊँचा उठने की सम्भावना नहीं है । परन्तु वास्तविकता यह है कि मनुष्य अपनी क्षमताओं और शक्तियों का बिखराव रोक कर उन्हें केन्द्रित करके एक दिशा में लगाए तो साहस जग सकता है और साहस जागे तो वे सत्प्रवृत्तियाँ भी उभरती हैं, जिनके सहारे छोटे मनुष्य भी बड़े बन सकते हैं, पिछड़े हुए भी उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँच सकते हैं 1) मनुष्य में ऐसे तत्व कूट-कूट कर भरे हुए हैं, जिनके सहारे सुषुप्त मानवता को उजागर किया जा सकता है । आवश्यकता है उस साहस की, जिसके एक झटके से महानता को प्रसुप्त स्थिति से जगाया और समुन्नत किया जा सकता है ।
साहस बढ़ता है कठिनाइयों से जूझने से
साहस हर किसी में मौजूद है । कई लोग उसे प्रयत्न करके बढ़ा लेते हैं । साहस बढ़ता है - संकल्प करने और उस कार्य के पूरा होने तक जुटे रहने से । कठिनाइयों को निमन्त्रण देने और उनके साथ जूझने से हिम्मत खुलती है | अखाड़े में उतरने का अभ्यास करने वाले बड़े-बड़े दंगलों में कुश्ती लड़ते हैं, उससे पहले कुशल पहलवान द्वारा पछाड़े भी जाते हैं ।
साहसहीनता आत्मनिर्भरता की कमी से
ľ साहस में कमी का एक कारण आत्मनिर्भरता की कमी है। वस्तुत साहस उत्पन्न होता है-अपने पर, अपनी शक्तियों और क्षमताओं पर विश्वास करने से । जो प्रत्येक कार्य में परमुखापेक्षी होते हैं या दूसरों पर निर्भर रहते हैं उन साहसहीन व्यक्तियों से सफलता कोसों दूर रहती है'
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