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१२८ तमसो मा ज्योतिर्गमय हैं तथा हर किसी को ताल ठोंक कर चुनौती देते है । अपितु वे हैं, जो स्वयं पर आने वाली विपत्तियों का सामना करते हैं तथा दूसरों पर आए हुए संकटों का निवारण करते हैं, सूझबूझ और सहायता देते हैं । वीरता और साहसिकता सिद्ध करने के लिए किसी को गिराने की आवश्यकता नहीं, उठाने और बनाने की है। ध्वंस का कार्य तो एक दियासलाई भो कर सकती है, वास्तव में सृजन का कार्य ही साहस का है। जिन्होंने मानवजाति की आध्यात्मिक उन्नति के सृजन की योजना बनाई और पूरी की, वे ही सच्चे माने में शूरवीर और साहसी हैं। बड़प्पन बनाने में है, बिगाड़ने या नष्ट करने में नहीं।
जो दूसरे की कमजोरियों और बुराइयों को उछालने और उन्हें दबाने-सताने में पराक्रम करते हैं, वे सच्चे माने में साहसी नहीं; साहसी वे हैं, जो अपनी कमजोरियों और बुराइयों को स्वीकार कर उन्हें दूर करने का पराक्रम करते हैं । सबसे बड़ी हिम्मत तो दुगुणों को छोड़ने का निश्चय करने और उन्हें दूर करने में साहसपूर्वक जुट जाना है । सामान्य व्यक्ति असफलताएँ मिलने पर हताश होकर उपयुक्त दिशा में आगे बढ़ने का हौसला भी खो बैठते हैं, परन्तु साहसी व्यक्ति असफलता मिलने के बाद भी दुगुनी हिम्मत और सतर्कता के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कदम बढ़ाते हैं।
अपने प्रति पक्षपात की आदत से अधिकांश लोग घिरे रहते हैं। दूसरों को आलोचना और टीका-टिप्पणी करने के लिए काफी मसाला एकत्रित कर लिया जाता है, परन्तु अपनी खराबियाँ और खामियाँ ढंढ़ कर निकालने में दिलचस्पी नहीं होती। इतना ही नहीं, अगर कोई वैसा सुझाव देता है तो बुरा लगता है। स्वभाव में प्रविष्ट इस दुर्बलता से लोहा लेकर जो उनको स्वयं ढंढते और स्वीकार करते हैं। सुधारने में बार-बार असफल होने पर भी धैर्य के साथ जुटे रहते हैं, वे ही सच्चे साहसी वीर हैं। साहसी के जीवन का राजमार्ग
__ साहस के अभाव में लोग जीने का ऐसा रास्ता अपनाते हैं, जो सरल और बिना किसी झंझट का हो । इस कारण वे नया कुछ भी सोच नहीं पाते और न ही नया कुछ कर पाते हैं, ऐसे लोग लकीर के फकीर या स्थिति स्थापक बने रहते हैं। वे संसार में हो रही प्रगति और विकास के पथ पर चलते तो हैं, किन्तु बिना मन से, घिसटते हुए चलते हैं। किंतु गलत परं. पराओं के घेरे से निकल कर नवीनता का मार्ग ग्रहण करना साहस पर ही निर्भर है । साहसी व्यक्ति को अपने ही बलबूते पर आगे बढ़ना पड़ता है।
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