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साहस की विजय-भेरी १२३ संसार में जितनी भी महासतियाँ हुई हैं उन पर बड़े-बड़े कष्ट आए हैं, किन्तु उन कष्टों का सामना उन्होंन साहस से ही किया है । राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर आदि महान व्यक्तियों पर कम संकट नहीं आए, परन्तु उन्होंने सभी संकटों को साहस के ब्रह्मास्त्र से लड़कर पराजित किया है । साहस की शक्ति अजेय और अपरिमित होती है, कष्टों और संकटों की सेना उसके सामने टिक नहीं सकती। साहस व्यक्ति को निर्भीक बनाता है ।
साहस व्यक्ति में निर्भयता का संचार कर देता है और निर्भय व्यक्ति अपने आध्यात्मिक जीवन का उत्तरोत्तर पूर्ण विकास कर लेता है । निर्भयता से आत्मविश्वास जागृत होता है, जिससे साधक अपनी जीवन नैया को काम-क्रोधादि मगरमच्छों से बचाकर संसार सागर से पार कर लेता है । साहसहीन व्यक्ति की जीवन नैया संसार-सागर के भँवर जाल में ही फंस जाती है। सर्व-प्रधान गुण : साहस ही है
मनुष्य दया, क्षमा, सरलता, मृदुता, विद्वत्ता, शास्त्रज्ञता आदि सभी सद्गुणों से सम्पन्न हो, किन्तु यदि उसमें साहस का अभाव है तो वह अपनी विशेषताओं, उक्त गुणों एवं योग्यताओं का कोई उपयोग नहीं कर सकेगा । वह बात-बात में शंका, तर्क-वितर्क, बहम, हीनता अन्थि, अशक्ति, असमर्थता आदि प्रकट करके पूर्वोक्त सद्गुणों एवं विशेषताओं को अभिव्यक्त करने में कतराएगा, घबराएगा। साहसहीन मनःस्थिति मनुष्य के सभी गुणों को पछाड़ देती है । अतः मनुष्य का सबसे प्रधान गुण साहस है । साधक के लिए तो यह सर्वप्रथम आवश्यक गण है, जो अन्य सभी गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। 'एडस्मिथ' के शब्दों में-"साहस के अभाव में संसार में अनेकों प्रतिभाएँ यों ही नष्ट हो जाती हैं। ऐसे अगणित योग्य और सम्पन्न व्यक्ति संसार में हुए हैं, जो साहस के अभाव में जीवन की सफलता के लिए प्रारम्भिक प्रयास भी न कर सके ।" कार्य में सफलता : साहस से हो
किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए साहस ही प्रारम्भिक प्रेरणा देता है और कार्य का साहसपूर्वक प्रारम्भ ही उसकी आधी सफलता है। शेष आधी सफलता प्रयत्न से मिल जाती है। किन्तु जिनमें जरा भी साहस नहीं होता, वे लोग किसी भी सत्कार्य को असम्भव, कठिन या विघ्नों से
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