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११ साहस की विजय-भेरी
साहसी व्यक्तियों की उत्कृष्ट वृत्ति
अध्यात्म की प्रथम शिक्षा अपनी आत्मशक्तियों को पहचानना, अपनी महत्ता को समझना और उनके सदुपयोग में एकाग्रतापूर्वक जुट जाना है । अध्यात्म-साधना के पथिक अपनी क्षमताओं को समझते और विकसित करते ही हैं, साथ ही वे इतना साहस करते हैं कि अपनी विभूतियों या उपलब्ध ऋद्धि-सिद्धियों का उपयोग सीमित क्षेत्र तक न करके उत्कृष्टता और आदर्शवादिता अथवा अन्तिम लक्ष्य प्राप्ति के व्यापक क्षेत्र तक करते हैं । ऐसे साहसी व्यक्ति ही स्व-परकल्याण का, शाश्वत शान्ति का और जीवन-लक्ष्य-पूर्ति का प्रयोजन पूर्ण करते हैं। जो संघर्षों से नहीं कतराता, वही सर्वोपरि साहसी
__ कार्य छोटा हो या बड़ा, आध्यात्मिक हो या सांसारिक सभी में मुसीबतें और विघ्न-बाधाएं आया करती हैं। इनसे बचने या कतराने से सफलता की मंजिल तक पहुँचना असम्भव है । लक्ष्य-पथ की इन रुकावटों का डटकर सामना करना वीरोचित साहस का कार्य है। आत्मविकास या धर्माचरण में पुरुषार्थ के पथ पर चलते हुए विघ्न-बाधाओं का आना स्वा. भाविक है। परन्तु जो कायर और कापूरुष होते हैं, वे इन विघ्नों से हार मानकर उद्यम करना छोड़ देते हैं; किन्तु सर्वोपरि साहसी वही है, जो इन विघ्नों और संघर्षों से कतराता नहीं। कष्ट और कठिनाइयों के पथ पर चलने में साहस आवश्यक
मनुष्य के जीवन की दो दिशाएँ होती हैं-एक सामान्य जीवन क्रम की और दूसरी असामान्य जीवन क्रम की। खाना-पोना, सोना, उठना
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