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आत्मनिर्माण का सर्वतोभद्र उपाय : स्वाध्याय
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एवं राक्षसी दुर्वृत्तियों की ओर बढ़ने लगता है । पानी को ऊपर चढ़ाना / ले जाना होता है तो रस्सी, बाल्टी, पम्प आदि का प्रयोग करना पड़ता है । यही बात स्वाध्याय के लिए कही जा सकती है; जो मन रूपी पानी को कुमार्ग की ओर बहने से रोकता है। यही वह पम्प है, जो मानसिक वृत्तियों को उच्च पथ पर चढ़ाकर तुच्छ मानव को महापुरुष की श्रेणी में ले जाकर बिठा देता है ।
युवक सारमिंटों एक दिन बेंजामिन फ्रैंकलिन की जीवनी पढ़ रहा था, जो एक साथ वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं राजनैतिक के रूप में विश्व - विख्यात हुआ। युवक के मन ने कहा - "फ्रैंकलिन जैसे अध्यवसाय से क्या यह सम्भव नहीं ?” उस दिन से उसने थोड़े ही दिनों में अंग्र ेजी, फ्रेंच एवं चिली आदि कई भाषाएँ सीखीं। देश में फैली हुई राजनैतिक स्वार्थपरता एवं भ्रष्टाचारपरायणता के विरुद्ध संघर्ष अर्जेंटाइना में छेड़ा, अर्जेण्टाइना निवासियों को संगठित किया। अर्जेन्टाइनावासियों को साक्षर बनाने का तीव्र अभियान चलाया । यही कारण है कि अर्जेंटाइना दुनिया में सर्वाधिक शिक्षित देश है । अर्जेन्टाइना का उपराष्ट्रपति बनने पर भी उसने सेवा मार्ग न छोड़ा | केवल इसी पुस्तक की प्रेरणा ने इस युवक को विश्वविख्यात कर दिया | वह युवकों से कहा करता था - यह आवश्यक नहीं कि तुम दिन-रात सत्साहित्य पढ़ो। थोड़ा पढ़ो, पर अच्छा पढ़ो। और जो पढ़ो, उसे जीवन में आत्मसात् करने का अभ्यास भी डालो तो तुम्हारे सामान्य जीवन में भी सफलता के अनेक द्वार खुल सकते हैं । वास्तव में सरसरी तौर से पढ़ने और पुस्तकें एक ओर पटक देने से बहुपठित का दावा तो किया जा सकता है, पर वैसा करने से वह लाभ नहीं मिल सकता, जो स्वाध्यायशीलों को मिला करता है ।
मनोयोग पूर्वक किये हुए स्वाध्याय से विचाररत्न- चयन
स्वाध्याय से मार्गदर्शन मिलता है, परामर्श भी मिलते हैं, घटना और विचारधारा भी सामने आती हैं । परन्तु उतने भर से स्वाध्याय का यथेष्ट लाभ नहीं मिल जाता । आवश्यक यह है कि प्रेरक प्रसंगों और सन्दर्भों की नोट बुक बना कर उसमें जो हृदयग्राही लगा हो उसे नोट करते रहा जाए । यह संकलन अवश्य ही समुद्र मन्थन के फलस्वरूप निकले हुए रत्नों की तरह बहुमूल्य विचार - रत्नों का संचय होगा । इस संचय को अवकाश निकाल कर बहुत ही मनोयोगपूर्वक पढ़ा जाए और यह सोचा जाए कि इन प्रसंगों के अनुरूप कदम बढ़ाना किस प्रकार संभव
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