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आत्मनिर्माण का सर्वतोभद्र उपाय : स्वाध्याय ६६ लोगों को दीक्षित करने, सुसंस्कृत बनाने और उत्कृष्ट जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए शक्ति, प्रकाश और प्रेरणा देने की उनमें सामर्थ्य रहती है। मुझे भी इन चारों महान व्यक्तियों से प्रेरणा मिली है। संसार में रहकर अनासक्त और कर्मयोगी कैसे रहा जा सकता है ? यह प्रेरणा भगवद् गीता से मिली। दलित वर्ग से प्रेम और उनके उद्धार की प्रेरणा मुझे 'बाइबिल' से मिली। युवावस्था में ही मेरे विचारों में प्रौढ़ता, कर्तव्यदक्षता और आशापूर्ण जीवन जीने का प्रकाश 'अंटु दिस लास्ट' से मिला । बाह्य विषयसुखों और प्रलोभनों-आकर्षणों से कैसे बचा जा सकता है ? यह विद्या मैंने 'दि किंगडम ऑफ गॉड, विदिन यु' से पाई। इस प्रकार मैं क्रमशः श्रीकृष्ण, महापुरुष ईसा, रश्किन और टालस्टाय के विचारों से दीक्षित हुआ । सशक्त विचारों की प्रतिमूर्ति प्राणपुज इन पुस्तकों के सान्निध्य में मैं नहीं आया होता तो आज मैं जिस रूप में हैं, उस तक पहुँचने वाली सीढ़ी से मैं उसी तरह वंचित रहा होता, जिस तरह स्वाध्याय और महापुरुषों के सान्निध्य में न रहने वाला कोई भी व्यक्ति वंचित रह जाता है।"
पं० जवाहरलाल नेहरू एक सम्पन्न परिवार के विलासप्रिय युवक थे, किन्तु निरन्तर वाचन का पैतृक गुण उन्हें अपने पिता मोतीलाल नेहरू से मिला था। वे कहा करते थे-“एकान्त की सर्वोत्तम मित्र पुस्तकें ही हो सकती हैं। मेरीडिथ की सुप्रसिद्ध पुस्तक 'एशिया एण्ड यूरोप' ने उनकी जीवनधारा ही बदल दी, उसी के मार्गदर्शन का यह फल था कि पं० जवाहरलाल नेहरू न केवल भारत या एशिया, अपितु समग्र विश्व के गणमान्य राजनेताओं की पंक्ति में जा बैठे। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद उनको इतिहास और राजनीति में रुचि गहराती गई। उन्होंने भारत, एशिया और विश्व-इतिहास का गहनतम स्वाध्याय किया, जिससे उन्हें राजनयिकों एवं सफल सम्राटों की सूझबूझ, चिन्तन, निष्कर्ष और अनुभव, एक विशाल खजाने के रूप में मिलते गये । मार्शल टीटो, मेक्समूलर, तथागत बुद्ध, भगवान महावीर, सुकरात, प्लेटो, मेकडोनल आदि में से जिस किसी को ढंढ़ना हो अपने विचारों के रूप में या सिद्धान्तों के रूप में सबके सब पं० जवाहरलाल नेहरू में मिल सकते थे।
... जार्ज बर्नार्ड शॉ को इतने उच्च एवं स्पष्ट विचारक बनाने का श्रेय भी पुस्तकों के स्वाध्याय को है । उनकी माता ने ६ वर्ष की उम्र से ही उनमें स्वाध्याय की अभिरुचि उत्पन्न कर दी थी। उनके पिता प्रायः कहा करते थे
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