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________________ आत्मनिर्माण का सर्वतोभद्र उपाय : स्वाध्याय उत्कृष्ट वातावरण कसे मिले आज हम जिस विश्व में रहते हैं, उसमें इन दिनों संकीर्ण स्वार्थपरायणता का दौरदौरा है । आदर्शों की ओर कदम बढ़ाने की अपेक्षा अधिकांश लोग निकृष्ट कृत्यों की ही बात सोचते हैं। उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने की अपेक्षा लोगों को तात्कालिक लाभ प्राप्त करने में अधिक रुचि है, फिर भले ही उसके लिए अन्याय, अनीति और भ्रष्टाचार का मार्ग ही क्यों न अपनाना पड़े। चारों ओर निकृष्टता और पतन वत्ति के पर्वत खड़े दिखाई देते हैं। नैतिक पतन, भ्रष्टाचार-परिवर्धन एवं निकृष्ट स्वार्थलिप्सा की परिस्थितियाँ मक्खी-मच्छरों की तरह पैदा होती और बढ़ती रहती हैं। श्रेष्ठ और उपयोगी मानवों को तथा नीतिमत्ता और श्रेष्ठता को प्रयत्नपूर्वक ढूँढ़ना और उनसे सीखना पड़ता है। सुसंस्कृत, चारित्रवान् और उत्कृष्ट मनुष्य सदा अल्पमत में ही रहे हैं, फिर श्रेष्ठता का प्रभाव क्षत्र भी उतना व्यापक नहीं होता, जितना कि निकृष्टता का । बहुमत का अनुसरण मनुष्य को एक ऐसी दुर्बलता है, जिसे कठिनाई से रोकना ओर बदलना शक्य है । पानी नीचे की ओर बहता है, इसी प्रकार मनुष्य की पाशविक वृत्तियाँ उसे नीचे की ओर धकेलती हैं, पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की तरह वे उसे अपनी ओर खींचती हैं । सामान्य बुद्धि का रुझान दूरदर्शी बनकर नीतिमत्ता, श्रेष्ठता एवं पारमार्थिक पथ को अपनाने की अपेक्षा किसी भी उपाय से तुरन्त भौतिक सुख-साधनों से लाभान्वित होने की ओर होता है । चारों ओर ऐसे ही निकृष्ट वातावरण का प्रभाब देखा जाता है । साधारण तौर पर भौतिकता का जीवन ही दृष्टिपथ में आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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