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८५ तमसो मा ज्योतिर्गमय
न्वित करने की साहसिकता अक्षुण्ण बनी रहे । आत्मिक प्रगति के मार्ग पर चलने के लिए साधक को कई व्यवधानों - विघ्न-बाधाओं से जूझने के लिए संकल्प बल की आवश्यकता पड़ती है । संचित दुष्कर्मों एवं कुसंस्कारों को निरस्त करके उनके स्थान पर सत्प्रवृत्तियों और सद्गुणों को स्थापित करने के लिए किया जाने वाला प्रबल संघर्ष से टक्कर प्रचण्ड मनोबल के कारण ही ली जा सकती है । धैर्यपूर्वक चिरकाल तक बिना उत्साह गिराए निर्धारित मार्ग पर चलते रहने के लिए दृढ़ संकल्प चाहिए । इसी से आत्मशक्ति बढ़ती है। त्याग प्रत्याख्यान एक प्रकार का संकल्प या प्रण है । जिससे आत्मा की शक्ति बढ़ती है । सामान्यतया सांसारिक वृत्ति के लोग बालबुद्धि एवं वानरवृत्ति के होते हैं । वे अधिक देर तक निर्धारित लक्ष्य पर टिके नहीं रह सकते । ज्यों ही कोई प्रलोभनों का झौंका आया अथवा कुविचारों या कुकर्मों का सुविधाजनक आकर्षण आया, कि वे फिसलने लगते हैं । पानी फैलते ही बिना किसी प्रयास के नीचे की ओर बहने लगता है इसी प्रकार चंचल वृत्ति के लोग प्रलोभन, मोहन और आकर्षण का दबाव पड़ते ही शीघ्र विचलित होकर दुष्कर्मों में या पाप-प्रवाह में बहने लगते हैं । मोक्ष मार्ग पर चलने पर अदृश्य आन्तरिक सफलता मिलने की ard स्थूलबुद्धि को विशेष आकर्षक नहीं लगती । अतः क्षणिक आवेशवश कदम बढ़ाये जाने पर भी तत्काल फल मिलने की उतावली में धैर्य और मनोबल टूट जाता है । आत्मनिर्माण या आत्मशुद्धि का मार्ग श्रम-साध्य, एवं समयसाध्य है | योग दर्शन में भी स्पष्ट कहा है
" स तु दीर्घकाल - नैरन्तर्य-सत्कारासेवितो दृढभूमिः ।”
उत्कृष्टता का वह मार्ग दीर्घकाल तक सतत सत्कार और श्रद्धापूर्वक साधना करने पर ही सुदृढ़ होता है ।
अतः चंचलता को ठुकराने वाला, प्रलोभनों और दबावों से बचाने वाला तथा दुष्प्रवृत्तियों से जूझने वाला प्रचण्ड मनोबल आत्मसाधना के द्वारा शक्ति, तेजस्विता एवं क्षमता प्राप्त करने वाले साधक का सर्वप्रथम आधार है । बाल्य चंचलता को हटाकर दृढ़ निश्चयी प्रौढ़ता उत्पन्न करने में प्रचण्ड मनोबल की ही मुख्य भूमिका रहती है । ऐसी दृढ़ता मनस्वी कार्यार्थी लोगों में होती है । इसके लिए शूरवीरों जैसी पराक्रमी मनःस्थिति चाहिए | इतना दृढ़ निश्चयी संकल्पबल जुटाए बिना किसी के लिए हिमालय की चोटी पर चढ़ने जैसा आत्मशक्ति का कीर्तिमान स्थापित
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