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________________ आत्मबल : सर्वतोमुखी सामर्थ्य का मूल ८७ नहीं जन्मा । अनुकूलताएँ न तो ऊपर से बरसी हैं और न हो देवों ने प्रारम्भ से ही उन्हें अनुकूलताएँ प्रदान की हैं वरन् अपने आत्मा में निहित बलपराक्रम को स्वयं प्रकट करके आगे बढ़े हैं, प्रतिकूलताओं से जूझकर स्वयं अपना रास्ता बनाया है। प्रतिकूल परिस्थिति में भी उन्हें दूसरों का सहारा या सहयोग न लेकर स्वयं अपने पैरों से चलना पड़ा है। भगवान महावीर के सामने इन्द्र ने स्वयं उपस्थित होकर प्रार्थना की-"भगवन् ! आप पर भयंकर संकट और कष्ट (उपसर्ग) आने वाले हैं, यदि आप आज्ञा दें तो मैं आपकी सेवा में रहकर इन कष्टों एवं संकटों से बचाने में आपकी सहायता करूं।" इस पर प्रभु महावीर ने जो उत्तर दिया, वह उनके आदर्श आत्मबल का परिचायक है-'इन्द्र ! ऐसा न तो कभी हुआ है, न होता है, और न ही होगा कि जिनेन्द्र दूसरे के बल पर अपना परम पद (मोक्ष) प्राप्त करें-- "स्ववीर्येणैव गच्छन्ति जिनेन्द्राः परमं पदम्" जिनेन्द्र अपने बल-वीर्य के सहारे से ही परमपद को प्राप्त करते हैं। अपना आत्मबल ही कर्मों को काटने, संवर और निर्जरा के लिए तथा आत्मशुद्धि के लिए पुरुषार्थ करने में समर्थ है। लोगों ने ऐसे महान पुरुषों को ऐसे ही कन्धे पर नहीं चढ़ाया, वरन् वे अपनी विशेषताओं के आधार पर हर किसी की आँखों के तारे बने और लोक हृदय में प्रतिष्ठित हो गए। आत्मबल संचय के चार आधार __ शरीरबल के लिए जिस प्रकार आहार, विहार, संयम और उत्साह जैसे साधन जुटाने पड़ते हैं, धनबल बढ़ाने हेतु पूँजी, योग्यता, परिश्रम और कुशलता जुटानी पड़ती है, शिक्षगबल के लिए अध्यवसाय, शिक्षक, शिक्षा-संस्थान, एवं प्रशिक्षण-सामग्री जुटानी पड़ती है. ठीक इसी प्रकार आत्मबल प्राप्त करने के लिए संकल्प, संयम, विश्वास और समर्पणता इन चार आधारों को जुटाना पड़ता है। परमात्मा की कृपा या दैवी अनुग्रह अथवा देवों का आगमन-आकर्षण इसी चुम्बकत्व के सहारे सम्भव होता है । निर्जरा की कुदाली से आन्तरिक क्षेत्र को खोदते-कुरेदते हुए आत्मा को मुक्ति चार साधनों से सम्भव है । प्रथम आधार : संकल्प संकल्प का अर्थ ऐसा मनोबल है, जिसके सहारे निश्चय को कार्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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