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१५ धर्म का अर्थ है—ग्रन्थियों का सन्तुलन, भावना का ___ सन्तुलन। १६ धर्म का अर्थ है-सत्य की खोज, सबके प्रति मैत्रीभाव का
विकास, समन्वय का विकास । समस्त मानसिक विकृतियों से
मुक्ति। १७ धार्मिक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह सदा कलह से बचने का
अभ्यास करे। १८ दूसरे व्यक्ति के साथ क्रूर व्यवहार न करना, दूसरे को
धोखा न देना तथा अपने चित्त को निर्मल रखना, यह है
नैतिकता। १६ मन में सबके प्रति करुणा का, मैत्री का अजस्र स्रोत फूट
पड़े-यह धर्म है। २० धार्मिक होने पर भी मृदु नहीं तो दिन तो है पर उजाला
नहीं। २१ धर्म हमारा धीरज है, हमारी आत्मा है। हमारा व्यक्तित्व
है। धर्म हमारी संस्कार-परंपरा को उजागर करता है । २२ जो सम्यगदष्टि होते हैं, धार्मिक होते हैं, वे कष्ट के आने
पर उसे शांतभाव से झेलते हैं। वे अपनी समता को नहीं
खोते। २३ चाहे आंधी आये-चाहे तूफान आये, चाहे धूप या कैसा
भी कष्ट आये लेकिन मन की प्रसन्नता बनी रहे यह धर्म
२४ दृढ़ मनोबल धार्मिकता की पहचान है। २५ वही धर्म सच्चा है जो मनुष्य का निर्माण करता है । उसका
जीवन बनाता है। २६ धर्म की रक्षा करने वाला सबकी रक्षा कर सकता है। २७ धर्म ने चेतना की शक्ति को पहचाना है, विज्ञान ने पदार्थ की
शक्ति को जाना है।
योगक्षेम-सूत्र
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