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________________ प्रेम की ईंट से अपने सुख का मन्दिर बनायो १ जीवन एक फूल है, प्रेम उसका मधु । २ प्रेम सबसे करो, विश्वास थोड़े का। ३ अपने सुख में हिस्सा दूसरों को देना एवं दूसरों के दुःख में हिस्सा बंटाना—यही जीवन की कला है । यह चाबी जिसने पायी, उसने जीवन में सुख ही सुख पाया। ४ प्रेम देना और प्रेम पाना जीवन का सर्वोत्तम आनन्द है। ५ प्रेम थकान को मिटाता है, दुःख को सुख बनाता है । जीवन के बगीचे में प्रेम का गुलाब खिलाकर अपने चहुं ओर सुगन्ध बिखेर देता है। ६ प्रेम पाने का सबसे सरल तरीका है-दूर रहो। इसीलिए भगवान् भी जल्दी नहीं आते हैं। वे सोचते हैं कि जितने दिन दूर रहेंगे, लोग मेरी बहुत प्रार्थना, पूजा, अर्चना और प्रेम करेंगे। ७ प्रेम दुःख और वेदना का बन्धु है। इस संसार में जहां दुःख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है। ८ अपने प्रेम की परिधि हमें इतनी बढ़ानी चाहिए कि उसमें गांव आ जाए, गांव से नगर, नगर से प्रान्त, यों हमारे प्रेम का विस्तार सम्पूर्ण संसार तक होना चाहिए। ६ प्रेम उन्नत करता है, काम अधःपतन करता है। १० आत्मदृष्टि से प्रेम उत्पन्न होता है और शरीर-दृष्टि से मोह उत्पन्न होता है। ११ मन को प्रभु-प्रेम में डूबो दो, मन भर जाएगा, जीवन तर जाएगा। प्रेम की ईंट से अपने सुख का मंदिर बनाओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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