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हमारे मन के उद्देश्य तनु के अणु-अणु में झलक आते हैं और हमारे चरित्र का प्रतिबिम्ब अंग-प्रत्यंग से झलकने लगता है। ८ संसार में आधे लोगों की अप्रसन्नता का कारण है-दूसरों से
ईर्ष्या एवं अपने से असन्तोष । है जितना समय शरीर की सफाई पर लगाते हैं उससे चौथाई
हिस्सा भी मन पर लगाएं तो समस्याए आगे नहीं बढ़ती। १० जैसे-तैसे चेतना का उर्ध्वगमन होता है मनुष्य का व्यक्तित्व
खिल उठता है । चेतना के विकास के लिए स्वस्थ और शान्त
मन की आवश्यकता होती है। ११ मनोवृत्ति का परिवर्तन ही हमारी असली विजय है। १२ मन की शक्ति गिरे नहीं, मन शक्तिशाली बना रहे—यह __ साधना का प्रथम बिन्दु है। १३ जैसी अपनी मनःस्थिति होगी, वैसी परिस्थितियां बनेंगी, वैसे
ही साथी मिलेंगे और स्तर के अनुरूप साधन जुटेंगे। १४ जिसने अपने मन को जीत लिया उसके लिए उसका मन सबसे
अच्छा मित्र है। परन्तु जो ऐसा करने में असफल हुआ है,
उसके लिए वही मन सबसे बड़ा शत्रु है। १५ मनुष्य के व्यवहारों, विचारों, व्याधियों की पृष्ठभूमि उसका
अपना मन है। १६ मन शरीर में केवल मनोवैज्ञानिक बीमारी ही नहीं बल्कि
शारीरिक रोग भी पैदा करता है। गलत विचार से हार्ट
अटैक, कैन्सर, गैस्ट्रिक अल्सर हो सकता है। १७ मन ही अपने लिए जीवन का रास्ता बनाता है और मृत्यु का
रास्ता भी मन में ही तैयार होता है। १८ एकाग्र तथा शान्त मन बिना थके लम्बे समय तक कठिन कार्य
कर सकता है। भीतरी तथा बाहरी व्यवधानों द्वारा वह
अपने लक्ष्य से भटकता तथा विचलित नहीं होता। १६ जिसका मन हार जाता है वह बहुत कुछ होते हुए भी अन्त
में पराजित हो जाता है। जो शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता उसको दुनियां की कोई ताकत परास्त नहीं कर सकती।
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योगक्षम-सूत्र
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