________________
मन उजियारा : जग उजियारा
१ दूसरों को चाहे जितना शान्ति का उपदेश दो, सुख-दुःखों में
सम रहकर आनन्द-मग्न रहने की चाहे जितनी मीमांसा करो, जब तक तुम्हारा हृदय शान्त नहीं है, जब तक तुम्हारा
हृदय आनन्द से पूर्ण नहीं है, तब तक सब व्यर्थ है । २ याद रखो जहां तुम्हारा मन है, तुम वहीं हो । मन्दिर में रहो
या वन में, मन यदि कारखाने में या बाजार में है तो तुम वहीं हो । जिसके मन में भगवान् बसते हैं, वह भगवान् के मन्दिर में है और जिसके मन में विषय बसते हैं, वह संसार में है। ३ मन में बुरे विचार आते ही उन्हें निकालने की चेष्टा करो। सदा चौकन्ने बने रहो। मन के बुरे विचार ही बुरे कार्यों की
जन्मभूमि है। ४ अपने को सदा सत्कार्य में लगाये रखो। तुम्हारे मन को कभी
अवकाश ही नहीं मिलना चाहिए-असत् का विचार भी करने के लिए। मन के सामने सदा इतने सदविचार और सत्कार्य रखो कि एक के पूरा होने के पहले ही दूसरे की चिन्ता उस पर सवार रहे। निकम्मा मन ही प्रमाद करता
५ मनोबल ही सुख है, जीवन है। मनोदौर्बल्य ही रोग है, दुःख
है, मृत्यु है। ६ जिसने अपने मन को वश में कर लिया उसकी जीत को कोई
भी हार में नहीं बदल सकता। ७ जिस तरह सुबह के समय ओस के प्रत्येक कण में सूर्य का लघु
सा प्रतिबिम्ब झलकता है, उसी प्रकार हमारे शरीर के प्रत्येक अण में हमारे मस्तिष्क का लघु रूप झलकता है।
मन उजियारा : जग उजियारा
७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org