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१५ व्यर्थ व्यय को बन्द करके आप दीन-दुखियों की मदद कर
सकते हैं, भूखों मरते गरीबों को जीवन दान दे सकते हैं, देश
और धर्म के उत्कर्ष में योग दे सकते हैं। १६ धन को अपने पास जमा करके मत रखो। संग्रह की मनो
वृत्ति आदमी को बांधती है। १७ आनन्द परिग्रह को बढ़ाने से नहीं, दिल को बढ़ाने से बढ़ता
१८ संग्रह करना सरल है किन्तु उस का विसर्जन कठिन है। १६ सौ हाथों से कमाओ और सहस्र हाथों से वितरण कर दो। २० पैसा स्वयं में बेमतलब है तब तक जब तक कि वह किसी __ आदर्श ने नहीं जुड़ता। श्रेष्ठ और निष्कलंक चरित्र से जुड़े
हुए धन की बराबरी दुनियां की कोई दौलत नहीं कर
सकती। २१ जब तुम अपनी सम्पत्ति में से कुछ देते हो, तो देते हो सही
लेकिन 'नहीं' के बरावर। जब तुम अपने आपमें से देते हो
तब वास्तव में दान करते हो। २२ कई ऐसे लोग भी हैं जो अपने विपुल संग्रह में से थोड़ा-सा
दान देते हैं और इसलिए देते हैं कि उनका नाम हो। और यह गुप्त वासना उनके दान को अशिव बना देती है। और ऐसे लोग भी हैं जिनके पास थोड़ा ही है, लेकिन वे सब कुछ
दे डालते हैं। २३ जिसमें दान देने की क्षमता नहीं होती, वह दीन है। २४ दूसरे को देगा कौन? जो दूसरे से आगे निकल जाने को
आतुर नहीं है वही। बांटेगा कौन ? जो छीनने को उत्सुक नहीं है, वही। दूसरे के लिए जीयेगा कौन? जो दूसरे के
जीवन को पीछे नहीं हटा देता। २५ शोषण का द्वार खुला रखकर दान करने वाले की अपेक्षा
अदानी बहुत श्रेष्ठ है, चाहे वह एक कौड़ी भी न दे।
योगक्षेम-सूत्र
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