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________________ सुपात्र दान बना देता महान १ धन की तीन गतियां होती हैं - दान, भोग और नाश । जो न दान दिया जाये, न भोगा जाये उसकी तीसरी गति होना निश्चित है । २ कमाये धन की रक्षा त्याग से होती है । ३ श्रेष्ठ पुरुषों का धन दुखियों का दुःख दूर करने के ही काम आता है । ४ जहर से तो खाली पात्र देना बेहतर है । ५ तुम्हें जो सम्पदा मिली है, वह संगृहीत करते और फूंकने के लिए नहीं, बल्कि सत्कार्यों में उपयोग करने के लिए है । ६ जब तक देह है, दे, दे, कुछ दे । जब देह नहीं रहेगी तो कौन कहेगा दे || ७ भोग को सीमित करने में ही सम्पत्ति का यथार्थ गौरव है । ८ दान का श्रेय यश नहीं, आत्म-संतोष है । ६ निराधार के सहारे बनो, सदाचार के प्यारे बनो । १० मांगने पर देना अच्छा है लेकिन आवश्यकता अनुभव करके बिना मांगे देना और भी अच्छा है । ११ धन वह है जिसमें विनिमय की क्षमता है, जिसकी उपयोगिता है । १२ किसने कितना दान दिया यह मत पूछो वरन् यह पूछो कि किस प्रयोजन के लिए किसके हाथों में सौंपा है । १३ तुम्हारे पास ऐसा है ही क्या जिसे तुम रखे रह सकते हो ? जो कुछ तुम्हारे पास है सब एक दिन दिया ही जायेगा । इसलिए अभी दे डालो ताकि दान देने का मुहूर्त्त तुम्हारे वारिसों को नहीं, तुम्हे ही प्राप्त हो जाये । १४ धनी वह होता है जो सोचता है कि अपनी सामर्थ्य से हर किसी के आंसू पौंछ दूं । सुपात्र दान बना देता है महान Jain Education International For Private & Personal Use Only ६ε www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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