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________________ १५ पाप के धागों से पुण्य की चादर नहीं बुनी जा सकती । १६ बिना देखे किसी वस्तु का पान न करो और बिना पढ़े कहीं हस्ताक्षर न करो । १७ माता-पिता के प्रसन्न हो जाने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाया करते हैं । १८ जहां पुत्र से भय होने लगता है, वहां सुख कैसा ? १६ जो परमात्मा से डरता है उसे फिर किसी से डरने की जरूरत नहीं पड़ती और जो परमात्मा से नहीं डरता उसे फिर हर किसी से डरकर रहना पड़ता है । २० मानव शरीर में दानव की आत्मा उतनी खतरनाक नहीं होती, जितनी खतरनाक होती है धर्म की पोशाक में अधर्म की पूजा । २१ अधिकार जितना बड़ा होता है, सहिष्णुता उतनी ही अधिक अपेक्षित हो जाती है । २२ समूचे विश्व पर अधिकार जमाने की आकांक्षा रखनेवाला एक मुहूर्त्त भी सुख की नींद नहीं सोता, प्राणीमात्र को आत्मतुल्य समझने वाला क्षण भर भी उद्विग्न नहीं होता । २३ अध्ययन का अर्थ केवल पास या फेल होना नहीं है । अध्ययन का वास्तविक अर्थ है - विनय | २४ सब शिष्ट और नेक आदमियों का आदर करते हैं । २५ बेईमान होने से गरीब होना बेहतर है । २६ जवान, स्वस्थ व ज्ञानवान आदमी दुनियां में सबसे अधिक किस्मतवाला होता है । २७ साफदिल आदमी हर वक्त सच बोलता है । ६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-मूत्र C www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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