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विकृत मन व्याकुल रहे, निर्मल सुखिया होय
१ मन में बुरे विचार, मैले विचार, गिरे हुए विचार आना मन
की हिंसा है। २ किसी को दुःख देने का जो भाव है, वही हमें नीचे गिरा देता
३ मन का हर मैल हमें दुःखी बनाता है, सुखी नहीं। ४ जब व्यक्ति का मन नीचे गिरने लग जाता है तो वह हल्के से
हल्का काम करने लग जाता है। ५ मन को भरना चाहिए मन की समाधि से, अच्छे विचारों से। ६ मन को समझना, खुश करना बहुत मुश्किल है। ७ मन की चोट बहुत भयंकर होती है। ८ जीवन बहुत सादा और आसान हो सकता है यदि मनुष्य का __ मन उसमें निरर्थक उलझने न डाले। ६ जिसके ऊपर व्यक्तिगत व पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ जितना हल्का होगा, वह उतना ही अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य
कर सकेगा। १० सूखी व्यक्ति न स्वयं को सताता है और न दूसरों को कष्ट
देता है। ११ ज्ञात-अज्ञात पाप ही अन्तःकरण की मलिनता है। १२ विशिष्ट उपलब्धि के लिए शुभ अध्यवसाय चाहिये । १३ मन की शान्ति-मानसिक सुख है। सहिष्णुता, मनोबल एवं
धृति मानसिक सुख के पहलू हैं। १४ शरीर-सुख की अपेक्षा मानसिक-सुख में रुचि जागे। १५ अपने को प्रसन्न रखने की शक्ति तो मनुष्य के ही मन में है
और वह शक्ति उसकी शुद्धता है। विकृत मन व्याकुल रहे, निर्मल सुखिया होय
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