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________________ प्रसन्नता अन्तःकरण की सहज स्वच्छता है १ प्रसन्नता से प्रफुल्लित हृदय अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी प्रीतिभोज के समान मधुर है। २ संस्कृत में प्रसन्न का अर्थ स्वच्छ है । जो स्वच्छ है वह प्रसन्न ३ सभी प्रकार के कुविचारों से दूर रहना, प्रसन्न रहने का सबसे उत्तम उपाय है। ४ निष्कलुष, निष्पाप, निर्दोष और पवित्र जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति ही सभी परिस्थितियों में प्रसन्न रह सकता है। ५ प्रसन्नता आत्मा को शक्ति देती है। ६ यदि हम प्रसन्न हैं तो सारी प्रकृति ही हमारे साथ मुस्कराती प्रतीत होती है। ७ यदि हम प्रसन्न रहेंगे तो अज्ञात रूप से विश्व की बहुत भलाई करेंगे। ८ मन को प्रसन्नता ही व्यवहार में उदारता बन जाती है। ६ प्रसन्नता आरोग्य है । अप्रसन्नता रोग है। १० मनुष्य अपनी प्रसन्नता के लिए स्वयं ही उत्तरदायी है। ११ पाप और प्रसन्नता कभी साथ-साथ नहीं रह सकते। १२ प्रसन्नता यह एक आन्तरिक दिव्यभाव अथवा अभिव्यंजना १३ प्रसन्न रहने का स्वभाव ही सफलता की आत्मा है। १४ प्रसन्नता का आधार है मानसिक सन्तोष । १५ हमारा भविष्य सुनहला है-इस तरह सोचने से हमारे हृदय में पवित्र सौन्दर्य उभरेगा और वर्तमान जीवन में चारों ओर प्रसन्नता ही प्रसन्नता छा जायेगी। प्रसन्नता अन्तःकरण की सहज स्वच्छता है ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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