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वह बुरी बात तुम्हारे पर कुछ तो अपना संस्कार डालकर ही
जायेगी। १३ किसी की नुक्ताचीनी मत करो। उसी तरह दूसरों से अपनी
नुक्ताचीनी सुनकर धैर्य मत खोओ। नुक्ताचीनी करने से व्यक्ति का महत्त्व न्यून होता है, धैर्यपूर्वक सुनने से महत्त्व
बढ़ता है। १४ किसी के अपराध को याद मत रखो। इससे अपना ही
अन्तःकरण अशान्त बनता है। किंतु अपराधी का कुछ भी अनिष्ट नहीं होता।
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योगक्षेम-सूत्र
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