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टाल सके तो टाल
१ जहां नम्रता से काम निकल जाये वहां उग्रता नहीं दिखानी
चाहिए। २ एक बार की गलती अनेक बार रुलाती है । ३ थोड़ी देर की प्रसन्नता ही अप्रसन्नता का सच्चा स्वरूप है। ४ लेन-देन में, बोलचाल में किसी से कोई झगड़ा हुआ हो, मनमुटाव हुआ हो, कलह हुआ हो तो उसे भुला दो। किसी प्रकार
की कलुषता हृदय में मत रखो। ५ उस खुशी से बचो जो कल तुम्हें काटे । ६ परनिन्दा-रूपी खेत में अपनी जिह्वा रूपी गौ को चरने से
रोक दो तो इस एक काम से ही जगत् के लोग तुम्हारे वश में हो जायेंगे। ७ वास्तविक उल्लास मन को सन्तुष्ट रखने पर मिलता है।
इसलिए उन बातों से बचो जो असंतोष भड़काती हैं। ८ आत्मा की विस्मृति के क्षण दुर्घटना के क्षण होते हैं। मान
वीय जीवन में जितनी दुर्घटनाएं होती हैं, वे सब इन्हीं क्षणों में होती हैं । इन क्षणों को टालें। ६ असावधानी सभी जगह खतरनाक है । १० हम भीतर शान्त हों तो बाहर का कोई कोलाहल बाधा
नहीं है, हम भीतर अशान्त हैं, यही एकमात्र बाधा है। ११ विवाद तब उठता है जब पानी की शांत सतह पर एक छोटा
सा कंकड़ आ गिरता है। १२ बने जहां तक किसी की हित बात भी मत सुनो। माना
कि उस बात से तुम्हारा कोई सरोकार नहीं है, फिर भी टाल सके तो टाल
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