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________________ सब खुशियों में परिश्रम का फल मधुरतम है २ हाथ और पैर का श्रम ही सच्चा श्रम है। २ श्रमशील मनुष्य ही जीवन का आनन्द पाता है। ३ मेहनत में मन लगे तो दूसरे मनोरंजनों की जरूरत नहीं। ४ जिस व्यक्ति को जीवन में सफल होना है, उसे श्रममय जीवन जीना होगा, कष्ट सहना होगा। ५ आपका कोई भी काम महत्त्वहीन हो सकता है किंतु महत्त्व पूर्ण तो यह है कि आप कुछ करें। ६ आधि-व्याधि को नष्ट करने का उपाय-श्रम करना है । ७ जो मस्तिष्क से श्रम नहीं लेता, वह बूढ़ा जल्दी होता है। ८ जितना श्रम उतना सुख, जितना आराम उतना दुःख । ६ श्रमशील मनुष्य ही जीवन में खुशी पाता है, वही स्वादिष्ट फल भोगता है। सूर्य सदैव श्रम करता है, सदा चलता रहता है, कभी आलस्य नहीं करता, इसलिए बराबर चलते रहो। १० अज्ञानी व्यक्ति छोटा-सा काम आरंभ करते ही बहुत परेशान हो जाते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति बड़े से बड़े काम को करके भी शांत बने रहते हैं। ११ आलसी, उदासीन, साहस-शून्य और भाग्य भरोसे बैठे रहने वाले मनुष्य के पास धनलक्ष्मी नहीं आती जैसे वृद्ध के पास युवा पत्नी। १२ पराधीन कामों का यत्नपूर्वक त्याग करो और अपने पुरुषार्थ से ऐसे काम करो जिन्हें तुम स्वतंत्र रूप से कर सकते हो। १३ परिश्रम से जीवन आनन्द से भरा रहता है, स्वास्थ्य में वृद्धि होती है, और रोगों से मुक्ति मिलती है। १४ गुनगुनाते अधरों के साथ किये गए श्रम से थकान नहीं आती और न थकान व्यक्ति पर प्रभाव डालती है-चहकते हुए मन की शक्ति आश्चर्यजनक होती है । योगक्षेम-सूत्र १ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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