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________________ उतावला सो बावरा, धीरा सो गंभीरा १ जल्दबाज, उद्विग्न, आवेशग्रस्त, सामर्थ्य से अधिक काम करने वाला, तनाव भरा जीवन वस्तुतः गरम जीवन कहा जा सकता है । धैर्यवान, शान्तचित्त, दूरदर्शी, प्रवृति के मनोविकारों एवं इन्द्रिय उत्तेजनाओं को नियंत्रण में रखने वाले, आहार-विहार में सात्विकता बरतने वाले ही शांत एवं शीत प्रकृति के कहे जा सकते हैं । उन्हीं का हृदय, फेफड़ा, स्नायुसंस्थान तथा रक्त प्रवाह सौम्य, शान्त एवं स्वाभाविक रीति से काम करता है । गर्मा-गर्म गर्मी से भरे लोग जल्दी उफनते और जल्दी चलते हैं । उनका आयुष्य कम हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या ? २ जिस व्यक्ति ने रात्रि के समय आनेवाले कल का कार्यक्रम नहीं बना लिया तथा जिसने बिस्तर से उठते समय आंखें मूंदकर भगवान् का ध्यान नहीं किया, उसका दिन कभी ठीक न बीतेगा। बिस्तर से जो कूदकर उठता है, वह वैसी ही मूर्खता करता है जैसी कि मोटर गाड़ी चलाने वाला तीसरे गियर में गाड़ी स्टार्ट करने में करता है । झटके से गाड़ी खराब हो जाती है । आंख खुलते ही कूद पड़नेवाला व्यक्ति शरीर की मशीन को घिस डालता है । ३ उतावली न करो । प्रकृति के सब काम एक निश्चित गति से चलते हैं । ४ जो निमित्त मिलने पर भी अपने को स्थिर रखते हैं, वे धीर हैं । ५ विशिष्टि ज्ञान उत्तेजना की स्थिति में नहीं, समाधि में होता है । ६ जीवन धरती है आकाश नहीं, इसलिए धीरे चलो पर क्रम से चलो । उतावला सो बावरा, धीरा सो गंभीरा Jain Education International For Private & Personal Use Only ४७ www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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