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________________ १२ कर्मशील व्यक्ति प्रायः उदास नहीं रहते क्योंकि कर्मशीलता और गमगीनी साथ-साथ नहीं रह सकती । १३ असफलताओं से हिम्मत ना हारो । १४ निराशा से हिम्मत ना हारिए सदैव आशान्वित रहिए। जहां चाह है मार्ग स्वतः बनता जाता है । १५ सबसे बड़ी शक्ति अपनी शक्ति है । सच्चा साथी तो अपनी योग्यता है | सच्ची प्रेरक शक्ति प्रकृति है जो हर वक्त प्रेरणा दे रही है । उठो ! आगे बढ़ो ! गतिशील रहो ! ठहरो मत ! ठहराव ही सड़न पैदा करता है । रुका हुआ पानी सड़ जाता है । १६ जो लोग आत्महत्या करके मर जाते हैं उनमें अधिकांश निराशावादी होते हैं । जीवन से निराश लोग होते हैं । १७ साहस मानसिक शक्तियों का नायक है । यह हार जाता है तो निर्णयशक्ति समाप्त हो जाती है, उत्साह फीका पड़ता है एवं तर्क शक्ति मन्द पड़ जाती है । यह सब मनुष्य के मन में शंका एवं भय भर जाने से होता है । १८ आप धरती पर प्रसन्नता से जीने के लिए आये हैं । आप जीवन से हारने नहीं जीतने आए हैं। आपका जीवन प्रसन्नता, शान्ति और उत्साह के लिए है, दुःखों और निराशाओं के लिए नहीं । १६ मानव ! तुम संसार में महान् आदमी हो। तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो, अक्षय आनन्द के भंडार हो । तुम्हारे एक हाथ में स्वर्ग और दूसरे में नरक । तुम्हारी एक भुजा में संसार दूसरी में मुक्ति । तुम्हारी एक दृष्टि में सृष्टि दूसरी में प्रलय । तुम भाग्य के खिलौने नहीं, निर्माता हो । तुम समय के सेवक नहीं, शासक हो । तुम काल के ग्रास नहीं, किन्तु कालजयी पुरुष हो । तुम अपने स्वरूप को समझो, शक्तियों को जगावो और जो आज तक नहीं कर पाए, वह कर दिखाओ । २० जो अपने से निराश हो गया उसकी कौन आशा बांधेगा । बुझो मत, बुझना पाप है Jain Education International For Private & Personal Use Only ૪૩ www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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