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________________ बुको मत, बुझना पाप है १ बुझो मत, बुझना पाप है । जलो और इस प्रकार जलो कि तुम्हारे जलने से घोर अमां पूनम की रात बन जाये और आसपास की कालिमा भी दूर हो जाये । २ निराशा की गोद में घुसकर आप कोई काम नहीं कर सकते । मैं मरूंगा नहीं क्योंकि मैं कोई ऐसा काम करूंगा नहीं । मरे वो जो जिंदगी से बुझे, थके, हारे या टूटे या जो पराये दर्द का पंथ नहीं बुहारे । ४२ ४ जितने बड़े काम उतने ही बड़े खतरे । अतः किसी खतरे के भय से बड़े काम को रोकना भूल है । ५ जिसका मन हार जाता है वह बहुत कुछ होते हुए भी अन्त में पराजित हो जाता है । जो शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता उसको दुनियां की कोई ताकत परास्त नहीं नहीं कर सकती । ६ धैर्य से शांति से क्या नहीं हो सकता ? , ७ अनेक बार घोर निराशा के बादलों के पार ही आशा की किरण चमक उठती है और पहले के आशा के खण्डहरों पर ही सफलता का नया भवन बन जाता है । दीप समजला करो, फूल सम हंसा करो । हर कठिन जीवन घड़ी में धैर्य धर बढ़ा करो ॥ ६ वही सच्चा साहसी है जो कभी निराश नहीं होता । १० मंजिल पाने में गति भले ही धीमी हो, पहुंच जायेंगे पर न चलने से नहीं पहुंचा जायेगा । ११ जूगनू तभी तक चमकता है जब तक उड़ता रहता है, यही हाल मन का है । जब भी हम रुकते हैं, अंधेरे में पड़ जाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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