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________________ हंसी जीवन का प्रभात है १ जो स्वयं हंसता है, वह दूसरों को भी हंसा सकता है । २ जीवन भर हंसते रहने वाला व्यक्ति अपने अन्त समय का स्वागत भी हंसकर करता है । ३ हम प्रसन्न रहें, प्रसन्नता बांटे और हंसी-खुशी का वातावरण बनायें, इसी में जीवन की सार्थकता है । ४ हंसी एक स्वस्थ मन की उपज है । ५ एक ताजगी, एक उत्फुल्लता - यही है हंसी का लुभावना उपहार | ६ आदमी सब दुःखों को हंसकर भूल जाता है, रोकर बढ़ाता है । ७ हंसी मन की गांठें खोलती है । अपनी ही नहीं, दूसरों की भी । वह सन्तुलन जो किसी निद्राविहीन रात्रि, अशुभ समाचार या दुःख, संताप अथवा चिंता के कारण बिगड़ सकता है एकबार जी खोलकर हंस लेने से पूरी तरह पुनः स्थापित हो जाता है । ६ शोकाकुल, चिंतातुर, व्यग्र, उद्विग्न और क्रुद्ध व्यक्तियों को कभी हंसी नहीं आती । ऐसे व्यक्तियों को किसी प्रसंगवश हंसी आ जाये तो फिर न संताप रहता है, न शोक, न चिन्ता सताती है और न व्यग्रता । १० हमेशा खुश रहो, इससे दिमाग में अच्छे विचार आते हैं और मन सदा नेकी की ओर लगता है । ११ नन्हीं - नन्हीं टहनियों पर खिलने वाले फूल केवल खिलना ही नहीं जानते, आगन्तुक को खिलाना भी जानते हैं । मुरझी हुई पत्तियां पथिकको आनन्द एवं उल्लास प्रदान नहीं करा पाती । १२ हंसते-मुस्कराते व्यक्ति के पास बैठने का, उससे बातें करने का हर किसी का मन करता है । १३ मन की दबी-जमी परतें हंसी की सरस उमंग से थिरककर खुलती ही चली जाती हैं और आप बेहद हल्के हो उठते हैं । हंसी जीवन का प्रभात है ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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