SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ विपत्ति संपत्ति है १ सङ्कट या तो मनुष्य को तोड़ देते हैं या फिर उसे चट्टान जैसा मजबूत बना देते हैं । २ कष्ट और क्षति सहने के पश्चात् मनुष्य अधिक विनम्र और ज्ञानी होता है । ३ सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं । बाजी पर बाजी हारते हैं, चोट पर चोट खाते हैं, धक्के पर धक्के सहते हैं पर मैदान में डटे रहते हैं । उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़ते, हिम्मत उनका साथ नहीं छोड़ती, दिल पर मालिन्य के छींटे भी नहीं आते। वे न किसी से जलते हैं, न चिढ़ते हैं । ४ पेड़ के नीचे चीते को खड़ा देखकर बन्दर हक्का-बक्का हो जाता है और हड़बड़ी में नीचे आ गिरता है । चीता उसे चुपचाप मुंह में दबाकर चल देता है । विपत्ति की घड़ी सामने आने पर अक्सर लोग ऐसी ही भयभीत स्थिति में फंस जाते हैं और बेमौत मरते हैं । ५ जीवन में आने वाली कठिनाइयां व समस्याएं आत्म विकास को गति देती है । ६ विपत्ति मनुष्य के ओज, धैर्य और साहस की कसौटी है । ७ जितनी कठिनाईयां सुख में बढ़ती है, उतनी दुःख में नहीं । समझदार वही हैं जो मुसीबत में भी होश - हवास न खोये । विपत्ति में भी जिस हृदय में सद्ज्ञान उत्पन्न न हो, वह उस सूखे वृक्ष के मानिंद है जो पानी पीकर भी पनपता नहीं, सड़ जाता है । १० अजेय है वह, जो जीवन की हारों में हारा नहीं । ११ सुख सौभाग्यशाली को परखता है और संकट महान् व्यक्ति को । Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy