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१३ दुर्जन का अन्न खाने से बुरी वृत्ति अवश्य पैदा होती है । १४ जो मनुष्य जिह्वा के वश होता है, उसकी बुद्धि नाश को
प्राप्त होती है। उसकी तीक्ष्ण बुद्धि भी मंद हो जाती है । १५ बुरे संस्कार आने का पहला द्वार है-आहार-अशुद्धि । १६ आहार-शुद्धि से मन शुद्ध होता है। १७ मन के असंतुलित होने पर सात्विक भोजन भी तामसिक बन
जाता है। १८ मन को सरस, सात्विक एवं हल्का बनाने के लिए तामसिक
भोजन का परहेज आवश्यक है। १६ आहार शुद्धि के अभाव में ब्रह्मचर्य, वाणी की मधुरता,
पवित्रता एवं स्वास्थ्य उपलब्ध नहीं होता।। २० जो हित, मित और अल्पमात्रा में भोजन करते हैं, उनकी वैद्य
चिकित्सा नहीं करते । वे स्वयं अपने चिकित्सक हैं। २१ भोजन के प्रति आसक्ति उतनी तीव्र न हो जाए कि रस
मनुष्य को पराजित कर दे। २२ अच्छा व्यवहार अच्छे विचार बिना नहीं, अच्छे विचार अच्छे
संस्कार बिना नहीं और अच्छा संस्कार अच्छे आहार बिना
नहीं हो सकता। २३ हमारा आहार पवित्र धन द्वारा इकट्ठा किया गया होना
चाहिए और उसमें वही पदार्थ होने चाहिये जो मंदिर में
देवताओं के भोग के लिए रखे जाते हैं। २४ हमें किसी कामी व क्रोधी मनुष्य द्वारा पकाया गया भोजन
सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि जैसे अन्न का प्रभाव मन पर
पड़ता है, वैसे ही मन का प्रभाव भी अन्न पर पड़ता है। २५ सतोगुणी आहार अपार सद्बुद्धि उपजाता है, तमोगुणी . आहार दुर्बुद्धि उपजाता है। २६ आहार पवित्र होने से अन्तःकरण पवित्र होता है । अन्तःकरण
की शुद्धि से विवेक-बुद्धि प्रखर होती है । २७ सात्विक भोजन सात्विक मन को पैदा करता है। २८ यह सच कहा है-'जिसने थोड़ा खाया उसने बहुत खाया, जिसने बहुत खाया उसने कम खाया।'
योगक्षेम-सूत्र
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