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पाहार पवित्र होने से अन्तःकरण पवित्र होता है
१ जो आमाशय पर अधिक भार लादता है, वह व्यक्ति अपने
जीवन में कभी प्रफल्लता की अनुभूति नहीं कर सकता। जितनी ओवर इटिंग होगी, पाचन-तंत्र को अधिक सक्रिय होना पड़ेगा। फलतः ऊर्जा की खपत अधिक होगी और व्यक्ति दीनता-हीनता का शिकार हो जाएगा तथा उसे अजीर्ण,
अपच, गैस ट्रबल जैसी बीमारियों से निरन्तर जूझना पड़ेगा। २ उपवास से मन का संयम, वत्तियों का परिमार्जन और
भावनाओं की विशुद्धता बढ़ती है। ३ प्रातःकाल का हल्का भोजन दिनभर की स्वस्थता एवं
प्रसन्नता का दाता है। ४ भोजन की अतिमात्रा बुद्धि की निर्मलता एवं शारीरिक
क्षमता को कम करती है। ५ मनुष्य जैसा अन्न खाता है, वैसा ही उसका मन हो जाता है। ६ आंतों को स्फूर्ति उपवास से मिलती है। ७ स्वास्थ्य का उपाय दवा नहीं, स्वास्थ्यकारी भोजन है। ८ क्षोभरहित प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिए। ६ जो भोजन दीर्घ जीवन, आरोग्य, स्वर्ग देने वाला न हो, पेट
पालक ही हो, उसे त्याग दें। १० शुद्ध, सात्विक, न्यायोपाजित, संस्कारी आहार प्राप्त किया
जाना चाहिए और उसे शरीर के लिए औषधि एवं अन्तःकरण शुद्धि के लिये सहयोगी मानकर अनासक्त भाव से खाना
चाहिये। ११ आप अंटसंट खाकर जीभ की आराधना करते रहें और
ईश्वर पद मिल जाए, यह कैसे संभव है ? १२ भोजन को खूब चबाकर खाओ, क्योंकि पेट में दांत नहीं होते। आहार पवित्र होने से अन्तःकरण पवित्र होता है
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