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________________ ६ ऐसी कौनसी परिस्थिति है जिसमें आदमी प्रेमपूर्ण न हो सके, ऐसी कौनसी परिस्थिति है जिसमें आदमी थोड़ी देर के लिए मौन और शांति में प्रविष्ट न हो सके। हर स्थिति में, हर परिस्थिति में वह जो होना चाहे वही हो सकता है । १० जैसे आपके विचार होंगे, वैसी ही आपके लिए आपकी दुनिया बनेगी। जिस बात का आपने पक्का इरादा कर लिया है, वह बात आपको संसार में दिखलाई पड़ेगी। ११ मनुष्य जैसा भाव करता है, वैसा ही हो जाता है । उसके ही भाव उसका सृजन करते हैं । वही अपना भाग्य विधाता है। १२ दृष्टि के अनुरूप सृष्टि बनती है । अपनी दृष्टि बदलो ताकि नई सृष्टि का दर्शन कर सको। १३ दूसरों को अशांत करने वालों को पहले स्वयं को अशान्त करना होता है। १४ जो औरों के पथ में कांटे बिछाता है, उसे पहले अपने पथ में कांटे बिछाने होंगे। १५ किसी के बगीचे में आक बोने के लिए पहले व्यक्ति को अपने हाथों में आक को थमाए रहना होगा। १६ इस दुनियां में किसी के दुःख को जान लेने का एक ही मार्ग होता है कि हम अपने आपको उसके स्थान पर रखकर सोचें। १७ दूसरों के हृदय में स्थान वही पा सकता है जो दूसरों के हृदय में विश्वास पैदा करता है। १८ हम वैसे हैं जैसे हमारे विचार हैं। लम्बे समय तक हम जिन विचारों के सम्पर्क में रहते हैं सचमुच वैसे ही बनने शुरू हो जाते हैं। १६ आप अपनी सुख-शान्ति के लिए स्वयं ही जिम्मेदार हैं। २० योगक्षेम-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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