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________________ जीने की कला १ जीवन-निर्माण की पहली शर्त है-कठोर श्रम । २ आदमी सुख के साधन तो बहुत जुटाता है पर सुख से जीना नहीं जानता। ३ अगर आप जीने की कला में माहिर हैं तो स्वयं को परेशानियों, क्रोध और निराशाओं से मुक्त रखकर प्रसन्न, सहज और संतुलित जीवन जी सकते हैं। ४ जीवन की सफलता के लिए दृष्टिकोण सही हो। ५ जो बात तुम्हें नापसन्द है, वह दूसरों के लिए मत करो। ६ बुराई करने वालों के प्रति भी मन में सद्विचार रखो। अच्छे विचारों से ही उनका सामना करो। यही तुम्हारा आदर्श होना चाहिए। ७ आरामतलबी का जीवन असफलता का जीवन है । ८ आनन्दमय जीवन बिताने का उपाय यही है कि मनुष्य मनो नुकूल कार्य में व्यस्त हो जाए, सुख-दुःख की चिंता में अपना समय न खोए। ६ जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है-अनुशासन । १० अगर कोई मनुष्य शुद्ध मन से बोलता या काम करता है, आनन्द उसके पीछे साये की तरह चलता है जो कि उससे कभी अलग नहीं होता। ११ दूसरों से अनुचित डाह मत करो। १२ जो आदमी गुस्से से भरा हो, उससे दूर रहो। १३ सुख में फूलो नहीं, दु:ख में रोओ नहीं । उतार-चढ़ाव किसमें नहीं होता? १४ जीने का मतलब मौज करना नहीं, दूसरे की सेवा करना है । जीने की कला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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